Thursday 17 December 2009

मैं जब छोटा बच्चा था तो मेरा एक शिक्षक था। करीब जब मैं चौथा ग्रेड मैं था, वे मेरा शिक्षक था। उसका नाम था फ्रांक लेकिन हम उनको कहते थे बुद्ध। क्यों हम उनको बुद्ध कहते थे? आप को लगता होंगा के हम उनको बुद्ध कहते थे क्योकि वे बहुत बुद्ध जैस्सा होंगा। लेकिन यह नहीं हैं। हम उनको बुद्ध कहते थे क्योकि वे बहुत बुढा था। उसकी उम्मर थी ७०। उसके माथे पर बाल नहीं थे और उसकी बीवी मर चुकी थी। उसके पास एक बच्चा था और एक बेटी थी और दोनों ४० वर्ष जैसे थे। उनके बच्चे अपने साथ नहीं रहते थे और वे भी शिक्षक थे दुसरे स्कूल में।

यह बुढा मेरा मन पसंद शिक्षक था। वे हमको लातिन सिखाते थे। यह भाषण बहुत चिरंतन हैं और मेडिकल फिएल्ड में बहुत उपयोग होती हैं। हम छात्र बहुत छोटे थे और इसके लिए बहुत खेल करते थे। एक दिन हम छात्र ने साडी कुर्सिया कमरे में उन्धी कर दी। ऐसी कुर्सिया थी के जब छात्र बेठे तो शिक्षक को छात्र का चेहरे नहीं लेकिन बाल दिखता था। हमारा शिक्षक इतना उम्र वाला था के उसने आधा घन्टे के बाद मालूम पड़ा के छात्र उंडे बैठते थे। जब उसको यह मालूम पड़ा उसने पूछा हम लोग क्यों उन्धे बैठते हैं। हम लोग ने कहा के "आप ने हम को कहा था ऐसे बेठना हैं।" उसने कहा के यह सब विचित्र हैं और पढने लगा लेस्सों प्लान।

एक बार लोग कक्षा के शुरू से पहले आए और कंप्यूटर पर जा कर "कैप्स लोक" दबाया। यह बुट्तों दाब कर हर अक्षर
कंप्यूटर में से मोठा होता हैं। लेकिन जब लोग "कप्स लोक" फिर नहीं दबाते, तो लोग पस्स्वोर्ड अच्छे से नहीं दे सकते और नतीजा यह हैं के लोग कंप्यूटर शुरू नहीं कर सकते। कंप्यूटर में यह मेसेज आता हैं के "कप्स लोक केय ओं हैं और आप को एक केय को बंद करनी हैं लोग ओं करने में।" यह मुस्किल बहुत आम हैं और सब लोग को आता हैं कैप्स लोक बंद करने मैं। फ्रांक इतना बुढा था के उसको आता नहीं था कैसे कैप्स लोक ऑफ करने का। उसने आधा घंटा कोशिश की यह मुश्किल को सीधे करने में लेकिन उसको नहीं खबर पड़ी प्रॉब्लम क्या था। इसलिए, उसने कंप्यूटर तेक्निशिओन बुलाया ऑफिस में से और उसने आकर दो सेकंड में प्रॉब्लम को सीधा कर दिया।

हम लोग छे महिना पढ़ते थे इस कक्षा में और हमने बहुत सिखा था। एक दिन हमारा फिनल परीक्षा था और उसने कहा था के गुरुवार सुबह आठ बजे यह फिनल हैं और हम लोग को इस वक्त आना पड़ेंगा। हम लोग घाबरे थे क्योकि यह एक्साम २० प्रतिशत की थी। छात्र आ गए थे और शिक्षक भी आ गया था। उसने कहा के हम लोग को एक छोटा सा फ्री रेस्पोंसे लिखना पड़ेंगा जब वोह फोटो कॉपी करने जायेंगा। शिक्षक बहार गया और यह सब मुझे मालूम हैं क्योकि ऑफिस में गप्प होता हैं। जब शिक्षक गया और फोटो कॉपी करने गया, तो सरे कागज़ काट हो गए। उसने फोटो कोपिएर में नहीं लेकिन एक पेपर कुत्टर में डाला था।

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मेरे पास एक दूसरा भी शिक्षा था लेकिन यह शिक्षक मेरा दिल चस्प नहीं था. यह शिक्षक बहुत घटिया था। मुझे हसना आता था लेकिन दुसरे लोग को आसू आते थे। मैंने यह कक्षा१२ धोरण में सैकोलोगी १०१ लिया था हाई स्कूल में। मुझे बहुत चिंता नहीं था क्योकि मैंने यह कक्षा १२ धोरण में लिया था और कॉलेज १२ धोरण के ग्रेड्स नहीं देखते होते। मेरे दोस्त भी थे यह कक्षा में और दोस्त बहुत परेशां थे क्योकि यह कक्षा बहुत मुस्किल था।

पहले दिन शिक्षक ने कहा के किताब को पढने की ज़रूरत बिलकुल नहीं हैं क्योकि पहले छात्र ने किताब नहीं पढ़ी और वे अच्छा करते हैं। सब लोग ने यह मान लिया और पहली परीक्षा में बहुत अफ़सोस किया। क्लास का औसत ६५ था और शिक्षा कर्वे नहीं करता। इस लिए हुआ क्योकि परीक्षा में हर सवाल किताब में से था। शिक्षक ने कहा के वे बहुत अचम्भा है के कोई लोग ने किताब नहीं पढ़ा। जब मेने कहा के "आप ने कहा के हम लोग ने किताब पढने का कोई ज़रूरत नहीं हैं" उसने कहा के "ऐसा मैंने कोई बात नहीं कहा हैं।"

इस वक्त के बाद हर छात्र क्लास में किताब पढने शुरू किया था। यह शिक्षक बहुत खतरनाक था। उसने कहा के लड़की लड़के जैसे नहीं हैं। लड़की को सिर्फ यद् शक्ति होती हैं और दिमाग उपयोग करने को नहीं आता। इस को साबित करने के लिए वे क्लास का सब से चतुर लड़का और बेवकूफ लड़की को सवाल पूछता था। इतना ख़राब एक लड़की को लगा के वह रोने लगी क्लास में। जब शिक्षक ने देखा के लड़की रोने लगी, तो उसने कहा के वह सिर्फ जोक करता हैं।

यह सब होने के बाद भी उसने खेल करने लगा। उसने कहा एक दिन के वे चार-पाच महीने से हैण्ड रेटिंग के बारे पढता हैं और दुसरे लोग के हैण्ड रेटिंग देखकर वे उसके बारे में कह सकता हैं। इसके लिए उसने कहा के यह साडी कक्षा में लोग ने एक निबंध लिखना हैं। चार हफ्ते पर उसने कुछ कहा नहीं था के हमारे हैण्ड रेटिंग के ऊपर। एक बार, एक छात्र ने पुचा के हमारा हैण्ड रेटिंग के विसाह क्या हुआ हैं और क्या कह सकता हैं। शिक्षक ने कहा के वे हमको कल कागज़ देंगा के हैण्ड रेटिंग पर क्या कह सकता हैं। अगले दिन शिस्क्हक ने हम लोग को कागज़ दिए और मेरे कागज़ में लिखा था "में बहुत हसने वाला आदमी हु। एक बार मुझे कुछ बुरा लगता हैं और एक बार मुझे कुछ अच्छा लगता हैं। वगेरा वगेरा।" यह देखकर मैंने कहा के "हा, में यह ही हूँ।" लेकिन कक्षा में सरे छात्र के पास यह ही कागज़ होता था और शिक्षक ने बताया के यह सब फालतू बात हैं हैण्ड रेटिंग देखकर को कह सकते हैं लोग कौन हैं।

मुझे लगता हैं के लोग उसको बहुत ख़राब समजते हैं लेकिन मुझे लगता है के वे सिर्फ मजाक वाला आदमी हैं और क्लास में यह मुझे सिखाया के ज़िन्दगी में कोई भी लोग आपके साथ कुछ कर सकता हैं। आप रो सकते हैं और हस सकते हैं। मैंने हँसा।

Tuesday 1 December 2009

अमीरी, गरीबी और नैतिकता

गांधीजि ने एक बार कहा था “दुनिया में सबकी जरूरतोंके लिये काफी है, लेकिन सबके लोभके लिये काफी नहीं है (There is enough for everybody’s need, but not their greed)।

पीछले कई सालोंसे दुनियामें असमानता (inequality) बढती जा रही है़

अमरिका, जापान, औस्ट्रेलिया और युरोपके कई धनिक (rich) देशोंमें सामान्य लोग १००-२०० डोलर्सका खर्चा कई मामुली (ordinary) और बिनजरूरी (unnecessary) चीज़ोंके लिये बडी आसानीसे (easily) कर देतें हैं

कुछ उदाहरण के रूपमें (for example), किसीके पास अच्छे कपडें हैं, लेकिन नयी फैशन शुरू होनेसे नये कपडें खरीदते हैं। बहुत सारे लोग रेस्तौरांमें खाने जाते हैं और काफी ज्यादा पैसा खर्च करते हैं, जबकी घरका खाना न केवल सस्ता होता है, स्वास्थ्यके (health) लिय हितकर (beneficial) भी होता है। कई लोग थोडा बडा टी।वी। खरीदनेमें ४००-५०० डोलर्स खर्च कर देतें हैं, जबकी उनका पुराना टी।वी। बिलकुल अच्छा चलता है।

एक सामान्य अमरीकी कुटुंबको (family) देखो। उनके पास दो या तीन गाड़ीयां, दो या तीन टेलीविज़न सेट्स, एक मोटा सा घर और १०० कपड़े होंगे। घरको गरम रखने के लिए हर महीने २०० डॉलर बिजली या गेस का बिल भरता होगा। हर साल एक या दो बार छुट्टियां लेके समुद्रके किनारे या पहाडोंमें घुमने जाते हैं और २००० से लेके १०,००० डोलर्स खर्च करतें हैं।

दूसरी ओर, दुनियाके बहुतसे गरीब देशोंमें मात्र १०० या २०० डोलर्सकी दवाइयोंकी जरूरत पूरी नहीं होती है। इस वजहसे कई बार बच्चोंकी या कई दफा (many times) बडे लोगोंकी भी जान चली जाती है। दुनियाकी ६ अरब (six billion) लोगोंकी वस्तीमेंसे १ अरबसे ज्यादा लोग हररोज़ १ डोलरसे कम पैसेमें अपना गुजारा करतें हैं। कुल मिलाके (total) लगभग २१७ (217) अरब लोग रोज़ २ (2) डोलर्ससे कम पैसेमें अपना गुजारा करनेके लिये संघर्ष करतें (struggle) हैं। विकासशील (developing) देशोंमें गरीबीका मतलब केवल पैसेकी कम आय (income) नहीं होता है। गरीबीका मतलब है, कई गरीब लोगोंको सिर्फ पानी या जलाउ लकडी (fuel wood) लेनेके लिये एक या दो मील चलना पडता है। गरीबीका मतलब है, कई लोग ऐसे रोगोंसे पीडित (suffer) होतें हैं जो की धनवान (rich) देशोंमें से ५० (50) से ज्यादा सालोंसे पेहले नाबूद (eradicated) हो गयें हैं। हर साल दुनियामें ६० लाख (6 million) बच्चें अपर्याप्त पोषण (inadequate nutrition) की वजहसे अपनी पांचवे जन्मदिनसे पेहले मर जातें हैं। आफ्रिकाके ५०से अधिक प्रतिशत (more than 50%) लोगोंको पानी सम्बन्धी बिमारियां (water-borne diseases) हो जाती है, जैसेकि कोलेरा, छोटे बच्चों की दस्त (diarrhea) विगैरह। आफ्रिकामें हर आधी मिनट एक छोटा बच्चा मेलेरियासे मर जाता है। कुल मिलाके (totally) दस लाखसे (one million) भी अतिरिक (more than) बच्चे मेलेरियाकी वजह मर जाते हैं। अस्सी करोडसे (800 million) जयादा लोग रोज भुखे पेट सो जातें हैं, उनमें से करीब तीस करोड (300 million) तो बच्चे होते हैं। दुनियाके ४० (40%) प्रतिशत लोगोंको आधारभूत स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधायें उप्लब्ध नहीं होती है (they don’t have reliable health care)। लगभग ४० प्रतिशत (40%) लोगोंको साधारण पाखाना (toilet) भी उपलब्ध नहीं होता है।

न्युयोर्क युनिवर्सिटीके एक फिलोसोफर, पीटर उंगर ने एक पुस्तक लिखी है, जिसका शीर्षक है, “लिविंग हाइ एंड लेटिंग डाइ” (living high and letting die)। इस पुस्तकमें उन्होंने काल्पनिक उदाहरण (imaginary example) दे के यह समज़ानेकी कोषिश की है कि गरीबोंको दान (donation) दिये बिना बहुत उच्च धोरणकी (high standard of living) जिन्दगी नैतिकताके (moral) धोरणसे (standard) उचित (appropriate) है कि नहीं। उसमेंसे एक उदाहरण मैं आपको देता हुं।


एक आदमी है और उसका नम है बोब। बॉबकी उमर
निवृत्ति (retirement) के करीब है। उसने अपनी सारी जिन्दगी पैसा बचाके एक दुर्लभ (rare) और कीमती (expensive) कार “बुगाट्टी” खरीदी। वह उस कारका बिमा (insurance) नहीं ले सका। बोबको “बुगाट्टी” के लिये बहुत गर्व (pride) था और उसको यह कार चलाके बहुत आनन्द मिलता था। उसे यह भी मालूम था कि निवृत्ति के बाद वो “बुगाट्टी”को बेचके अपना निर्वाह (day today expenses) चला सकेगा क्योंकि ये कारकी कीमत हमेशा बढती जाती थी। एक दिन शामको बोब कार लेके घुमनेके लिये निकला। वह अपनी कार एक रैल की पटरीके (track) पास खडी करके रैलके ट्रेक पर चलने निकला। थोडी देर उसे ट्रैनकी आवाज़ सुनाइ दी। उसने देखाकी जिस पटरी पर ट्रैन आ रही थी, उस पटरी पर एक छोटासा बच्चा आगे दौड रहा था और वह बच्चेका ध्यान ट्रैनकी ओर नहीं था। बोबने जोरसे आवाज़ दी, लेकिन बच्चेको सुनाइ नहीं दिया। बोब पटरी बदलने वाले लीवरके करीब था। बच्चेको बचानेके लिये बोबके पास एक विकल्प (option) ये था कि वह लीवर खींचके ट्रैनका रास्ता बदलदे जिससे ट्रैन दूसरी पटरी पर जा सकती थी। मगर ऐसा करनेसे उसकी “बुगट्टी” का निश्चित नाश (certainly destroyed) होने वाला था। ऐसा होनेसे बोबको निवृत्तिके बाद गुजारा करनेमें तकलीफ हो सकती थी। बोबके पास ज्यादा सोचनेका समय नहीं था। उसने जल्दीमें लीवर नहीं खैंचनेका निर्णय (decision) किया और बच्चेकी जान चली गयी। उसके बाद कई सालों बोबने अपनी निवृत जिंदगी आरामसे गुजारी।

हममेंसे ज्यादातर लोग यह कहानी सुनके सोचेंगे कि बोब वर्तन पुर्ण रूप (completely) से अनैतिक (immoral), दोषित (faulty) और

ष्ठुर (heartless) था।

लेकिन दूसरी नज़रसे देखा जाये तो हम सब ऐसा वर्तन हररोज करतें हैं। आप सब सोचेंगे की हम ऐसा वर्तन कर ही नहीं सकते। सच तो ये है कि सिर्फ २०० (200) डोलर्स का दान (donation) करके हम दुनियाके गरीब देशोंमें किसिकी जान बचा सकते हैं। लेकिन सामान्य जीवनमें मशगुल (absorbed in day to day life) हम लोग ऐसा सोच नहीं सकते कि २०० डोलर्स का दान नहीं दे के हम भी उपर वाली कहानीमें बोब ने जो विकल्प चुना (chose the option) था वही विकल्प चुनते हैं। यह बात का हमें पता नहीं चलता क्योंकि मरने वाले बच्चें हमारी नज़र के सामने नहीं होते हैं।

औस्ट्रेलिया का फिलसुफ (philosopher) पीटर सिंगर जो प्रिंस्टन युनिवर्सिटीमें पढाता है, अपनी आय (income) का पांचवा हिस्सा (fifth part) अकाल राहत संगठनों (famine relief organizations) को दान में दे देता है। उसका मानना है कि “जब से मैंने समाचार पत्रोंमें अकाल पीडित (famine suffering) लोगों की तसवीरें देखी, जब कई विध्यार्थी अपनी निजि (pocket expense) खर्च के पैसोंमें से दान मांगने आते थे, तब मैंने सोचा, इतना ही क्यों?, ज्यादा क्यों नहीं”।

क्या यह मुमकीन (possible) है कि हम तय (decide) कर सकें कि कितना दान देना उचित (appropriate) है? नीचे दिये हुए निबन्धमें पीटर सिंगर अपने कुछ असाधारण विचार(extraordinary thinking) पेश (shows) करता है और दिखाता है की अमरिकाके आम नागरिक का दुनियाके गरीब लोग प्रति (towards) क्या कर्तव्य (duty) है। वह मानता है कि उसका अपनी आय (income) का पांचवा हिस्सा दान में दे देना शायद काफी नहीं है।

ब्राज़िलियन फिल्म “सेंट्रल स्टेशन” में डोरा एक निवृत (retired) शिक्षिका (teacher) है, जो अपना गुजारा (day to day expenses) स्टेशन पर अनपढ (illiterate) लोगोंके लिये पत्रों लिख के करती है। एक बार अचानक उसे १००० डोलर्स (1000 dollars) कमाने की तक मिलती है। इसके लिये उसे एक बेघर (homeless) बच्चेको समजा-पटाके एक निश्चित (a certain address) पते पर भेजना होता है। डोरा को बताया गया है की किसी धनिक (rich) देशका अमीर कुटुम्ब (richfamily) वह बच्चेको गोद (adopt) लेना चाहता है। वह बच्चेको निर्धारित पते (designated address) पर पहुंचा देती है और उसको १००० डोलर्स मिल जाते हैं। वह उसमें से थोडा पैसा एक नया टी।वी। सेट खरीदने में खर्च करती है और अपनी नयी प्राप्ति (acquisition) का आनन्द लेने में मशगुल (occupied) हो जाती है। लेकिन थोडे दिनों बाद उसके पडौशी उसका मज़ा किरकिरा (spoil) कर देते हैं। उसके पडौशी डोराको बतलातें हैं कि जो बच्चा उसने भेजा था उसकी उम्र गोद लेने के लिये ज्यादा थी और इसी लिये वह बच्चेको मारके उसके अन्दरके शारिरीक अवयव (internal organs) दूसरें रोगी लोगोंकी शरीरमें रोपण (transplant) करने के लिये बेचे जायेंगे। शायद डोराको पेहलेसे ऐस शक था, लेकिन उसने अपने दिल की बात नहीं सुनी थी, लोभ (greed) जो उसको था, नया टी।वी बसाने का। लेकिन अब जब उसके पडौशीयोंने डोराको साफसाफ शब्दोंमें सुना दिया तो वह रातभर सो नहीं पायी। सुबह उठके डोरा निश्चय (decides) करती है की व बच्चेको वापीस लेके रहेगी।

मानो (suppose) कि डोरा उसके पडौशीयों को कहेती की ये दुनियामें गुजारा (day to day expense) करना बहुत मुश्कील है, पडौशीयोंके पास भी तो नये टी।वी। सेट्स हैं, और उसके लिये नया टी। वी। खरीदने बच्चेको बेचने का ही रास्ता है तो उसमें क्या गलत बात है। आखिरमें (ultimately) वह बच्चा एक बेघर (homeless) सडकपे रहने वाला बच्चा ही तो था। ऐसा कहनेसे फिल्म देखने वाले लोग तुरंत डोराको शैतान (satan) समजने लगेंगे। डोरा को फिल्ममें अच्छा दिखाने का एक ही रास्ता है, और वो ये है की उसको काफी खतरा मोडके (taking risk) भी किसी भी तरह बच्चेको बचाना पडेगा।

मुवीके अंतमें, दुनियाके अमीर देशोंके सिनेमाघरोंमें, श्रोताएं (audience) बहुत जल्दीसे डोराको शैतान समज लेंगे अगर उसने वह बच्चेको अपने खुदके एपार्टमेंटसे भी अच्छे घरमें न भेजा होता तो। लेकिन हकीकत ये है कि अमरिकाके कई लोग बिन जरूरी चीज़ों पर ईतना ज्यादा खर्च करतें हैं कि उसमें से अगर थोडा भी पैसा लोग परोपकारी संस्थाओं (charitable agencies) को दान में दे तो वह पैसा गरीब देशोंके जरूरतमन्द(in need) बच्चों के लिये जिवतदान (life saving) बन सकता है।

यह सब बातें सवाल उठाती है: अंतमें एक ब्राज़िलियन शिक्षिका जो एक बेघर बच्चेको शरिर के अंगोका व्यौपार करने वालों को बेचती है और एक साधारण अमरिकी नागरिक जिसके पास एक टी। वी। है ओर बेहतर टी। वी। खरीदता है, उनमें नैतिक (moral) तौर से क्या फर्क है, खास करके जब कि वोह जानते हैं की उतना पैसा वोह अगर किसी अच्ची संस्थाको(organization) देके दुनियाके कई देशोंमे गरीब बच्चोंकी जान बचा सकतें हैं?

अलबत्त (ofcourse), दोनों परिस्थितियोंमे काफी फर्क है जिसकी वजहसे हमारी नैतिक सोच अलग होती है। जो बच्चा आपकी नज़रके सामने है उसको मौतके मुंहमे धकेलना बहुत कठीन और निष्ठुर बात है। कोई बच्चा, जिसे आपने कभी देखा नहीं है, उसकी जान बचाने के लिये की गयी दान की अपील ठुकराना अलग और आसान बात है। फिरभी व्यवहारिक फिलोसोफी (practical philosophy) की द्रष्टिसे दोनों बात गलत है।

हम लोग भी युनिसेफ या ओक्ष्फेम जैसी संस्थाओं को दान दे के कईं बच्चोंकी जान बचा सकतें हैं। कुछ विशेषग्य़ों (experts) का अनुमान है की सिर्फ २०० डोलर्स का दान बडी आसानीसे (easily) किसी एक रोगीष्ठ (diasesed)sz २ साल के बच्चे को ६ साल के तंदुरस्त बच्चे में रूपांतर कर सकता है- जो कि यह उम्र में बच्चे को रोगसे मरने कासब से ज्यादा खतरा होता है। उपर बताये हुए फिलोसोफर पीटर उंगर ने अपने लेखमें वाचकों को अपील की है वोह अपना क्रेडीट कार्ड का उपयोग करके और युनिसेफ (टेलीफोन नंबर ८००-३६७-५४३७) या ओक्ष्फेम अमेरिका (टेलीफोन नंबर ८००-६९३-२६८७) को कोल कर के पैसे दान कर सकतें हैं और किसीकी जान बचा सकतें हैं।