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रक्षा बंधन हर साल भारत में मनाया जाता हैं. पूर्णिमा के वक्त पर, हर बहें अपने भाई के हाथ पर एक राखी बांधती हैं. हर भाई का ज़िमादारी हैं के उनके बहें को संभालना हैं और यह राखी इसका प्रतिक हैं. इस त्यौहार का भी एक कहानी हैं. बलि प्रलाध का पोता था और एक महान राक्षश रजा था. वह भगवन विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था. लेकिन इन्द्र (वर्षा का भगवन) और बलि के बीच में जब युद्ध हुआ, विष्णु को इन्द्र को बचाना पड़ा और बलि को पाताल में चोदना पड़ा. बलि को पता था के उनके विष्णुजी उन्हीके बाला के लिए पाताल में डाला पड़ा. विष्णुजी उनके उपासना से खुश हो कर, उनके राजत्व का पहरा बनगया. लक्ष्मी माँ को बहुत दुखी हुई उनके पति को ऐसे देख कर. उन्होने एक ब्राह्मण औरत बन कर, बलि के राजत्व में आकर बलि से पुछा अगर वह उनके राजत्व में रहे सकती हैं. बलि ने उनको अपने बहें जैसे समजकर लक्ष्मीजी को राजत्व में रहेने दिया. लक्ष्मीजी के आने के बाद, राजत्व सफल बनगया. एक दिन, पुर्णिमा के वक्त प्र, लक्ष्मीजी ने बलि के हाथ प्र एक राखी बांध कर, उनके सौभाग्य के लिए पूजा किया. बलि को इतना कुशी हुआ के उसने लक्ष्मीजी को एक वादा दिया. लक्ष्मीजी के कौनसे भी इचा, रजा बलि पूरा करेगा. लक्ष्मीजी ने उसे अपने पताजी (भगवन विष्णु) वापस माँगा. बलि को यह बात समज नहीं आ रहा था. फिर, लक्ष्मीजी और भगवन विष्णु ने अपने असली रूप में बदल्गाये. फिर, रजा बलि को समाज आया के उनके उपासना की वजय से लक्ष्मीजी और भगवन विष्णु अपने आपसे दूर हुए. इसी तरह, रक्षा बंधन शुरू हुआ. हर सल्, बुहेनें अपने भाइयों के हाथ पर राखी बांधते हैं और भाइयों वादा लेते हैं की वे उन्हें रक्षा करेंगे और उन्हें करची देते हैं.
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