आज कल भी भारत में दहेज प्रथा होता है। मुझे लगता है की ये परंपरा बहुत पुराणी है और आज के ज़माने में मतलब गायब हो गया है। पहेले दिनों में, बीवी के माँ-बाप पति के परिवार को बहुत पैसे देते थे। ये पैसे के अपेक्षा के वजा से माँ-बाप अपने बेटी को नफरत से देक्ठे थे। खबी-खबी ये लड़कियां को बहुत मरते भी थे जब दहेज़ प्रथा का दम नहीं मिल पाए। इस लिए ये परंपरा कभी शुरू नहीं होना चाहिय
कोई लोगों पुराणी ज़माने पर अभी तक रहेते हैं। हल की लोग भी शादी के समय पर ये सब करते हैं। लकिन, अब दूसेरह चीज़ भी देना पड़ता है। सब पाठी के परिवार को अच्छे अच्छे गहने देनअ भी पड़ना होता है। और उसके बाद, उत्सव मैं तोफे फिर देने होते हैं। पहेले ज़माने मैं दहेज़ प्रथा होता था क्योंकि पाठी शादी के बाद सब कमाता था और घर पर रोटी लता था। बीवी इस के लिए पैसे देने पदथे थे। लकिन आज कल, बीवी भी बहुत कम करती हैं। दोनों बहुत पैसे कमाते हैं, तो फिर ये सब क्यों करना है?
hai hai aur aaj ke
Tuesday, 3 March 2009
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