Tuesday, 8 April 2008
गर्बा न्रत्य
नवां शताब्दी में गुजरात को चार प्रभाग बनाया गया था। ये चार प्रदेशो के नाम थे सौराष्ट्र, कच्छ, आनार्ता और लात। रास, गार्बा, हुडो और टिपण्णी सौराष्ट्र के नृत्य थे। गर्बा आनार्ता मे भी नाचते थे। लेकिन भारत में आजकल सभी लोग रास और गर्बा नाचते हैं। गुजराती शादियों में गर्बा और रास नृत्य शादी के पहले नचाते हैं। आज मैं गर्बा के बारे में लिखूंगी।
गर्बा नृत्य गुजरात कि एक लोक नृत्य है। यह सुंदर नृत्य श्री कृष्ण और उनकी गोपियों की रास लीला सें जुडे है। औरते के द्वारा नवरात्रि की रात में गर्बा किया जाता है। शरद पूर्णिमा, वसंत पूर्णिमा और होली के दिनों में भी गर्बा प्रसिद्ध है। गर्बा शब्द गर्बा-दीप सें आया है जिसका अर्थ है मिट्टी के बरतन में दीप। इस नृत्य में औरते दिपावाला बरतन उनके माथे पर रखती हैं और चक्कर में नाचती हैं। नाचने के साथ साथ वे गाती भी हैं और ताली भी बजाती हैं। गर्बा के कपड़े रंगबिरंगे होते है। नाचने और गाने के लिए लोक-संगीत भी होता है। नवरात्रि पूजा में औरते आदमी और बच्चे भी गर्बा करते है। गर्बा के गाने अम्बा माता, एक देवी, की स्तुति है जिसमे उनकी शक्ति, रूप और लोगो की प्रार्थना होती है।
हमारे शहर मे हिंदू समाज है और उसके द्वारा नवरात्री मनाया जाता है। जब मैं जवान थी तो हर साल नवरात्रि के रात में मैनें गर्बा करती थी। नाचने में मुझे बहुत मज़ा आता था और होड़ में मुझे पुरस्कार भी मिले रंगीन चन्या चोली पहनकर मैं सारी रात नाचती थी। मेरी यादोँ में मुझे नवरात्री में गर्बा किए हुए पंद्रह साल हो गए। हर साल में चाहती हूँ कि इस साल मैं जरुर नाचूंगी लेकिन कोइ न कोइ रुकावट आजाती है। अगले साल एक शादी में मैं खूब नाच सकती हूँ। शायद अगले हफते जब मेरे दोस्त के शादी हो, मैं गर्बा नाच सकूंगी।
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