Monday, 2 March 2009

दहेज प्रथा

दहेज प्रथा एकआछी चीझज थी, लेकिन अब बहुत गड़बड़ हो गया । आज कल सब लोग पैसा कमा सकते है । औरत भी कमासकते है । जब औरत काम कर सकते, तब दहेज प्रथा की क्या जरूरत क्या है? दहेज प्रथा अब कुच नही करता है । आब बस खराब लोग पैसा लेते है बिना मतलब से । कुच लोग पैस सालओं के लीये पैसा मिंते है । बोलते है की उन्के बेट लड़की को चोडेगा । ये बिल्कुल ठीक नही है । कुच मतलब नही है, बस लोग पैसा के लीये करते है और लड़ की परीवार करती है क्यो की सब डरे है की आदमी की परीवार कुच करेगा । इस लीये, मतलब एक आछा चीज नही है ।

Sunday, 1 March 2009

दहेज़ प्रथा

दहेज़ प्रथा एक पुराने ज़माने की परम्परा है जो बहुत सालों पहले शुरू किया गया था। नियम के मुताबिक जब पती-पतनी एक नई जिंदगी शुरू करना चाहते है तो लड़की के परिवार को उन्हें पैसा देना चाहिए जिससे वे अपनी जिंदगी शुरू कर सके। क्योंकि पतनी अपने ससुराल में रहती है, ससुराल वालों को उसका बोझ उठाना पड़ता है। इस लिए ससुराल वाले दहेज़ नही दिया करते। वैसे तो यह कारन ठीक लगता है लेकिन असलियत में दहेज़ प्रथा ऐसे नहीं चलता है। परमपरा के नाम पर ससुराल वाले अक्सर दहेज़ प्रथा का नाजायज़ फ़ायदा उठाते हैं। इतिहास में हजारों कहानिया हैं जिनमे ससुराल वाले अपनी बहु को परेशान करते हैं क्योंकि उसके माता-पिता दहेज़ नही दे पाए। कभी कभी इन कहानियो का अंत इस्से भी ख़राब होता है। जो प्रथा अच्छे वजह के लिए शुरू किया गया था अब खतरनाक बन चुका है. आज की दुनिया में दहेज़ प्रथा की कोई ज़रूरत नही है और हिंदुस्तान में इसे और सकती से रोका जाना चाहिये।

दहेज़ प्रथा

दहेज़ प्रथा एक संस्कृति परंपरा था। पिछले दिनों में दुल्हन के बाप ने दुल्हन को पैसा, चीजे, और सोना देता था। बाप बहुत कुछ देता था ताकि अगर अपनी बेटी का पति को कुछ होगया थो उसकी बेटी का सेकुरिती है। पिछले दिनों में यह एक अच्छी बात था क्योंकि उस दिनों में अद्वंसद टेक्नोलॉजी नही था और लोग बीमारी से मरते थे। जमाना बदल गया है और आजकल यह बात नही है। अब दहेज़ प्रथा संस्कृति परम्परा नही है। अब दहेज़ प्रथा एक क्षम्य है लालच के लिए। आजकल बहू कि ससुर और सास सिर्फ़ पेसे नही मांगते - वे गाडियाँ और सामान मांगते है। ये चीजे बेटी के लिए नही है ले किन सास और ससुर के लिए है।
मेरे ख्याल में, दहेज़ प्रथा बहुत बुरी परंपरा है। आजकल लोग इस कि चीज़ नही करना चाहिए। यह उचित नही है बहू के लिए, उसके माँ-बाप के लिए, और बहू कि पति के लिए। अगर बहू कि बाप बहुत कुछ नही दे सकता तो शादी में तेंशुं होता है। पति और पत्नी के बीच एक सचाई रिश्ता नही बन सकता। भारत में, अगर बहू के बाप बहुत कुछ नही दे सकता, बहू के सास और ससुर बहू को आग लगते है या मारते है। पेसे देने बाप का फर्ज़ नही है - जमानत है। मेरे परिवार में हमे यह पुरानी चीज़ नही करते। शादी में सब लोग सिर्फ़ प्यार करने का फर्ज़ है।

दहेज प्रथा

हिन्दुस्तानी संस्कृति में परीवार वालों अपनी बेती कि होने वाले पती को दहेज देते हैं। दहेज में लोग पैसा, झमीन, और कीमती चीजें देते हैं। पैले जमाने में दहेज एक पिता अपनी बेटी की जमानत के लीये देता था। अगर पती को कुछ हो गया थो दहेज की मदद से लर्ड्की रहै अकती है। लेकिन अब जब वक्त बदल गया है, दहेज का रिती-रिवज भी बदलना चहिये। आज-कल जादा तर लर्ड्कीओं भी कम करने लग गयी हैं, थो वह अपनी आप पैसे कमा सक्ती हैं। इस्सी लिये इनको अपनी परीवार का पैसा कि जरुरत नहीं हैं, वह अपनी जमानत अपने बना सकती हैं। उपर से अब दहेज जमानत के लिये नहीं रहा और लर्ड्के का परीवार दहेज का उमीद रक्ता है। कई बार जब परीवार बर्डा दहेज मान्ग्ता है लर्डी वाजे नहीं दे पाते। दहेज कि वजे से लोग शादी को इन्कार भी केर देते हैं। बर्डा दहेज देना एक प्रतियोगता बन गया है और जो परीवार नहीं दे पाता अलाब पर जाते हैं। अगर शादी हो भी जाती है दहेज कि बात नहीं रुक थी है। परीवर वाले लर्डी को जला भी देते है अगर उसकी परीवार से और देहज में नहीं मिल ता। अब दहेज देना बहुत बर्डी मुसीवत बन गयी है और यह प्रथा कतम होनी चहिये।

दहेज़ प्रथा

दहेज़ एक कीमत पत्नी के परिवार पति के परिवार को दिया जाता है। इस पत्नी के साथ दिया जाता है। दहेज़ ब्रामिन क्लास शुरू हुई थी। अक्सर पति के परिवार बहुत सारे पैसे, गहने और तोहफे मांगता है। दहेज़ प्रथा हमारे पुराना परम्परा है। लेकिन, बहुत लोग आजकल ख़राब तरह इस्तमाल करते हैं। कुछ पति अपनी पत्नी को मारते, जलाते हैं और जान से भी मार देते हैं। १९६१ में, एक कानून बना गया, दहेज़ रोकने के लिया। लेकिन, अभी भी होता है।
जब मैं शादी करूँगा, मैं दहेज़ नहीं मांगूंगा। मैं सोचता हूँ की अगर मेरी पत्नी के परिवार अपना परिवार को तोहफा देने चाहते हैं, तो मैं मानूंगा। हो सकता है की मई और अपना परिवार भी अपनी पत्नी के परिवार को तोहफा दें। मेरे दादाजी और पिता ने दहेज़ नहीं माँगा था और मैं भी दहेज़ नहीं मांगूंगा।

दहेज़

दहेज़ प्रथा बहुत साल पहले शुरू हुआ था। यह परम्परा सिर्फ़ हिंदू परम्परा नही है। यह परम्परा बहुत सरे संस्कृतियों में होता था। भारत में यह परमपरा ब्राह्मण शादियों में शुरू हुआ था। दहेज़ इस लिए दिया जाता है क्यूंकि एक बहु की ख्याल रखने में ससुराल को बहुत पैसा लगता है, और इस लिए लड़की के माता पिता लड़के के परिवार को बहुत सरे पैसे और तोफे देते है। पुराने ज़माने में लड़की के परिवारी दहेज़ अपने मन से देते थे, लेकिन आज कल बहुत परिवार दहेज़ मांगते है या उस परिवार से रिश्ता नही बनते है। आज कल बहुत सरे पत्नियों को ससुराल में ख़राब तरीके से रखा जाता है क्यूंकि उन्होंने दहेज़ नही दिया है। मेरे ख्याल से यह ग़लत चीज़ है। लेकिन कोई परिवारों में लड़की के माता पिता शौक से दहेज़ देते है, और मुझे लाजता है की ये ठीक है।

दहेज प्रया

भारत में दहेज प्रया आम है। अतीत में परिवार ने सिर्फ़ पैसे दिए। उब लोग उपहार भी देते हैं। कुछ लोग सोचते हैं कि पद्धति उच्ची है लेकिन मैं सोचती हूँ कि कोई परिवार पैसे मागने का हक नहीं है। लोगों कहते हैं कि हिन्दुस्तानी संस्कृति के लिए यह पद्धति बर्ड बाग है। लेकिन पत्नी की कीमत पैसे को ज्यादा है। कुछ लोगों शादी के बाद उपहार् लेते है और पत्नी को छोड देते हैं। दूसरा पति शादी के बाद उनकी पत्नी को चिल्लाते और मरते हैं। दहेज प्रया बहुत ख़राब पद्धति है। लेकिन उब इस दुनिया में ज्यादा पति और पत्नी सब कुछ घर में बाँटते हैं। मुझे लगता है कि लड़के और लड़कियाँ के परिवार दोनों उपहार दिएँ। फ़िर यह पद्धति उचित होगा। आज कल यदि लडकी का परिवार गाडी दी तो पति और पत्नी दोनों फायदा मिले। दहेज प्रया के कारण अगर लडकी गरीब परिवार से आई तो यह अमिर लडके के साथ शादी नहीं कर सकता क्योंकि उसका परिवार बड़ा दहेज नहीं समर्थ होते। अगर दहेज प्रया नहीं था तो ज्यादा लोग शादी प्यार के कारण करेंगे और अगल जाति के लोग शादी कर सकते हैं।