Thursday 17 December 2009

मैं जब छोटा बच्चा था तो मेरा एक शिक्षक था। करीब जब मैं चौथा ग्रेड मैं था, वे मेरा शिक्षक था। उसका नाम था फ्रांक लेकिन हम उनको कहते थे बुद्ध। क्यों हम उनको बुद्ध कहते थे? आप को लगता होंगा के हम उनको बुद्ध कहते थे क्योकि वे बहुत बुद्ध जैस्सा होंगा। लेकिन यह नहीं हैं। हम उनको बुद्ध कहते थे क्योकि वे बहुत बुढा था। उसकी उम्मर थी ७०। उसके माथे पर बाल नहीं थे और उसकी बीवी मर चुकी थी। उसके पास एक बच्चा था और एक बेटी थी और दोनों ४० वर्ष जैसे थे। उनके बच्चे अपने साथ नहीं रहते थे और वे भी शिक्षक थे दुसरे स्कूल में।

यह बुढा मेरा मन पसंद शिक्षक था। वे हमको लातिन सिखाते थे। यह भाषण बहुत चिरंतन हैं और मेडिकल फिएल्ड में बहुत उपयोग होती हैं। हम छात्र बहुत छोटे थे और इसके लिए बहुत खेल करते थे। एक दिन हम छात्र ने साडी कुर्सिया कमरे में उन्धी कर दी। ऐसी कुर्सिया थी के जब छात्र बेठे तो शिक्षक को छात्र का चेहरे नहीं लेकिन बाल दिखता था। हमारा शिक्षक इतना उम्र वाला था के उसने आधा घन्टे के बाद मालूम पड़ा के छात्र उंडे बैठते थे। जब उसको यह मालूम पड़ा उसने पूछा हम लोग क्यों उन्धे बैठते हैं। हम लोग ने कहा के "आप ने हम को कहा था ऐसे बेठना हैं।" उसने कहा के यह सब विचित्र हैं और पढने लगा लेस्सों प्लान।

एक बार लोग कक्षा के शुरू से पहले आए और कंप्यूटर पर जा कर "कैप्स लोक" दबाया। यह बुट्तों दाब कर हर अक्षर
कंप्यूटर में से मोठा होता हैं। लेकिन जब लोग "कप्स लोक" फिर नहीं दबाते, तो लोग पस्स्वोर्ड अच्छे से नहीं दे सकते और नतीजा यह हैं के लोग कंप्यूटर शुरू नहीं कर सकते। कंप्यूटर में यह मेसेज आता हैं के "कप्स लोक केय ओं हैं और आप को एक केय को बंद करनी हैं लोग ओं करने में।" यह मुस्किल बहुत आम हैं और सब लोग को आता हैं कैप्स लोक बंद करने मैं। फ्रांक इतना बुढा था के उसको आता नहीं था कैसे कैप्स लोक ऑफ करने का। उसने आधा घंटा कोशिश की यह मुश्किल को सीधे करने में लेकिन उसको नहीं खबर पड़ी प्रॉब्लम क्या था। इसलिए, उसने कंप्यूटर तेक्निशिओन बुलाया ऑफिस में से और उसने आकर दो सेकंड में प्रॉब्लम को सीधा कर दिया।

हम लोग छे महिना पढ़ते थे इस कक्षा में और हमने बहुत सिखा था। एक दिन हमारा फिनल परीक्षा था और उसने कहा था के गुरुवार सुबह आठ बजे यह फिनल हैं और हम लोग को इस वक्त आना पड़ेंगा। हम लोग घाबरे थे क्योकि यह एक्साम २० प्रतिशत की थी। छात्र आ गए थे और शिक्षक भी आ गया था। उसने कहा के हम लोग को एक छोटा सा फ्री रेस्पोंसे लिखना पड़ेंगा जब वोह फोटो कॉपी करने जायेंगा। शिक्षक बहार गया और यह सब मुझे मालूम हैं क्योकि ऑफिस में गप्प होता हैं। जब शिक्षक गया और फोटो कॉपी करने गया, तो सरे कागज़ काट हो गए। उसने फोटो कोपिएर में नहीं लेकिन एक पेपर कुत्टर में डाला था।

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मेरे पास एक दूसरा भी शिक्षा था लेकिन यह शिक्षक मेरा दिल चस्प नहीं था. यह शिक्षक बहुत घटिया था। मुझे हसना आता था लेकिन दुसरे लोग को आसू आते थे। मैंने यह कक्षा१२ धोरण में सैकोलोगी १०१ लिया था हाई स्कूल में। मुझे बहुत चिंता नहीं था क्योकि मैंने यह कक्षा १२ धोरण में लिया था और कॉलेज १२ धोरण के ग्रेड्स नहीं देखते होते। मेरे दोस्त भी थे यह कक्षा में और दोस्त बहुत परेशां थे क्योकि यह कक्षा बहुत मुस्किल था।

पहले दिन शिक्षक ने कहा के किताब को पढने की ज़रूरत बिलकुल नहीं हैं क्योकि पहले छात्र ने किताब नहीं पढ़ी और वे अच्छा करते हैं। सब लोग ने यह मान लिया और पहली परीक्षा में बहुत अफ़सोस किया। क्लास का औसत ६५ था और शिक्षा कर्वे नहीं करता। इस लिए हुआ क्योकि परीक्षा में हर सवाल किताब में से था। शिक्षक ने कहा के वे बहुत अचम्भा है के कोई लोग ने किताब नहीं पढ़ा। जब मेने कहा के "आप ने कहा के हम लोग ने किताब पढने का कोई ज़रूरत नहीं हैं" उसने कहा के "ऐसा मैंने कोई बात नहीं कहा हैं।"

इस वक्त के बाद हर छात्र क्लास में किताब पढने शुरू किया था। यह शिक्षक बहुत खतरनाक था। उसने कहा के लड़की लड़के जैसे नहीं हैं। लड़की को सिर्फ यद् शक्ति होती हैं और दिमाग उपयोग करने को नहीं आता। इस को साबित करने के लिए वे क्लास का सब से चतुर लड़का और बेवकूफ लड़की को सवाल पूछता था। इतना ख़राब एक लड़की को लगा के वह रोने लगी क्लास में। जब शिक्षक ने देखा के लड़की रोने लगी, तो उसने कहा के वह सिर्फ जोक करता हैं।

यह सब होने के बाद भी उसने खेल करने लगा। उसने कहा एक दिन के वे चार-पाच महीने से हैण्ड रेटिंग के बारे पढता हैं और दुसरे लोग के हैण्ड रेटिंग देखकर वे उसके बारे में कह सकता हैं। इसके लिए उसने कहा के यह साडी कक्षा में लोग ने एक निबंध लिखना हैं। चार हफ्ते पर उसने कुछ कहा नहीं था के हमारे हैण्ड रेटिंग के ऊपर। एक बार, एक छात्र ने पुचा के हमारा हैण्ड रेटिंग के विसाह क्या हुआ हैं और क्या कह सकता हैं। शिक्षक ने कहा के वे हमको कल कागज़ देंगा के हैण्ड रेटिंग पर क्या कह सकता हैं। अगले दिन शिस्क्हक ने हम लोग को कागज़ दिए और मेरे कागज़ में लिखा था "में बहुत हसने वाला आदमी हु। एक बार मुझे कुछ बुरा लगता हैं और एक बार मुझे कुछ अच्छा लगता हैं। वगेरा वगेरा।" यह देखकर मैंने कहा के "हा, में यह ही हूँ।" लेकिन कक्षा में सरे छात्र के पास यह ही कागज़ होता था और शिक्षक ने बताया के यह सब फालतू बात हैं हैण्ड रेटिंग देखकर को कह सकते हैं लोग कौन हैं।

मुझे लगता हैं के लोग उसको बहुत ख़राब समजते हैं लेकिन मुझे लगता है के वे सिर्फ मजाक वाला आदमी हैं और क्लास में यह मुझे सिखाया के ज़िन्दगी में कोई भी लोग आपके साथ कुछ कर सकता हैं। आप रो सकते हैं और हस सकते हैं। मैंने हँसा।

Tuesday 1 December 2009

अमीरी, गरीबी और नैतिकता

गांधीजि ने एक बार कहा था “दुनिया में सबकी जरूरतोंके लिये काफी है, लेकिन सबके लोभके लिये काफी नहीं है (There is enough for everybody’s need, but not their greed)।

पीछले कई सालोंसे दुनियामें असमानता (inequality) बढती जा रही है़

अमरिका, जापान, औस्ट्रेलिया और युरोपके कई धनिक (rich) देशोंमें सामान्य लोग १००-२०० डोलर्सका खर्चा कई मामुली (ordinary) और बिनजरूरी (unnecessary) चीज़ोंके लिये बडी आसानीसे (easily) कर देतें हैं

कुछ उदाहरण के रूपमें (for example), किसीके पास अच्छे कपडें हैं, लेकिन नयी फैशन शुरू होनेसे नये कपडें खरीदते हैं। बहुत सारे लोग रेस्तौरांमें खाने जाते हैं और काफी ज्यादा पैसा खर्च करते हैं, जबकी घरका खाना न केवल सस्ता होता है, स्वास्थ्यके (health) लिय हितकर (beneficial) भी होता है। कई लोग थोडा बडा टी।वी। खरीदनेमें ४००-५०० डोलर्स खर्च कर देतें हैं, जबकी उनका पुराना टी।वी। बिलकुल अच्छा चलता है।

एक सामान्य अमरीकी कुटुंबको (family) देखो। उनके पास दो या तीन गाड़ीयां, दो या तीन टेलीविज़न सेट्स, एक मोटा सा घर और १०० कपड़े होंगे। घरको गरम रखने के लिए हर महीने २०० डॉलर बिजली या गेस का बिल भरता होगा। हर साल एक या दो बार छुट्टियां लेके समुद्रके किनारे या पहाडोंमें घुमने जाते हैं और २००० से लेके १०,००० डोलर्स खर्च करतें हैं।

दूसरी ओर, दुनियाके बहुतसे गरीब देशोंमें मात्र १०० या २०० डोलर्सकी दवाइयोंकी जरूरत पूरी नहीं होती है। इस वजहसे कई बार बच्चोंकी या कई दफा (many times) बडे लोगोंकी भी जान चली जाती है। दुनियाकी ६ अरब (six billion) लोगोंकी वस्तीमेंसे १ अरबसे ज्यादा लोग हररोज़ १ डोलरसे कम पैसेमें अपना गुजारा करतें हैं। कुल मिलाके (total) लगभग २१७ (217) अरब लोग रोज़ २ (2) डोलर्ससे कम पैसेमें अपना गुजारा करनेके लिये संघर्ष करतें (struggle) हैं। विकासशील (developing) देशोंमें गरीबीका मतलब केवल पैसेकी कम आय (income) नहीं होता है। गरीबीका मतलब है, कई गरीब लोगोंको सिर्फ पानी या जलाउ लकडी (fuel wood) लेनेके लिये एक या दो मील चलना पडता है। गरीबीका मतलब है, कई लोग ऐसे रोगोंसे पीडित (suffer) होतें हैं जो की धनवान (rich) देशोंमें से ५० (50) से ज्यादा सालोंसे पेहले नाबूद (eradicated) हो गयें हैं। हर साल दुनियामें ६० लाख (6 million) बच्चें अपर्याप्त पोषण (inadequate nutrition) की वजहसे अपनी पांचवे जन्मदिनसे पेहले मर जातें हैं। आफ्रिकाके ५०से अधिक प्रतिशत (more than 50%) लोगोंको पानी सम्बन्धी बिमारियां (water-borne diseases) हो जाती है, जैसेकि कोलेरा, छोटे बच्चों की दस्त (diarrhea) विगैरह। आफ्रिकामें हर आधी मिनट एक छोटा बच्चा मेलेरियासे मर जाता है। कुल मिलाके (totally) दस लाखसे (one million) भी अतिरिक (more than) बच्चे मेलेरियाकी वजह मर जाते हैं। अस्सी करोडसे (800 million) जयादा लोग रोज भुखे पेट सो जातें हैं, उनमें से करीब तीस करोड (300 million) तो बच्चे होते हैं। दुनियाके ४० (40%) प्रतिशत लोगोंको आधारभूत स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधायें उप्लब्ध नहीं होती है (they don’t have reliable health care)। लगभग ४० प्रतिशत (40%) लोगोंको साधारण पाखाना (toilet) भी उपलब्ध नहीं होता है।

न्युयोर्क युनिवर्सिटीके एक फिलोसोफर, पीटर उंगर ने एक पुस्तक लिखी है, जिसका शीर्षक है, “लिविंग हाइ एंड लेटिंग डाइ” (living high and letting die)। इस पुस्तकमें उन्होंने काल्पनिक उदाहरण (imaginary example) दे के यह समज़ानेकी कोषिश की है कि गरीबोंको दान (donation) दिये बिना बहुत उच्च धोरणकी (high standard of living) जिन्दगी नैतिकताके (moral) धोरणसे (standard) उचित (appropriate) है कि नहीं। उसमेंसे एक उदाहरण मैं आपको देता हुं।


एक आदमी है और उसका नम है बोब। बॉबकी उमर
निवृत्ति (retirement) के करीब है। उसने अपनी सारी जिन्दगी पैसा बचाके एक दुर्लभ (rare) और कीमती (expensive) कार “बुगाट्टी” खरीदी। वह उस कारका बिमा (insurance) नहीं ले सका। बोबको “बुगाट्टी” के लिये बहुत गर्व (pride) था और उसको यह कार चलाके बहुत आनन्द मिलता था। उसे यह भी मालूम था कि निवृत्ति के बाद वो “बुगाट्टी”को बेचके अपना निर्वाह (day today expenses) चला सकेगा क्योंकि ये कारकी कीमत हमेशा बढती जाती थी। एक दिन शामको बोब कार लेके घुमनेके लिये निकला। वह अपनी कार एक रैल की पटरीके (track) पास खडी करके रैलके ट्रेक पर चलने निकला। थोडी देर उसे ट्रैनकी आवाज़ सुनाइ दी। उसने देखाकी जिस पटरी पर ट्रैन आ रही थी, उस पटरी पर एक छोटासा बच्चा आगे दौड रहा था और वह बच्चेका ध्यान ट्रैनकी ओर नहीं था। बोबने जोरसे आवाज़ दी, लेकिन बच्चेको सुनाइ नहीं दिया। बोब पटरी बदलने वाले लीवरके करीब था। बच्चेको बचानेके लिये बोबके पास एक विकल्प (option) ये था कि वह लीवर खींचके ट्रैनका रास्ता बदलदे जिससे ट्रैन दूसरी पटरी पर जा सकती थी। मगर ऐसा करनेसे उसकी “बुगट्टी” का निश्चित नाश (certainly destroyed) होने वाला था। ऐसा होनेसे बोबको निवृत्तिके बाद गुजारा करनेमें तकलीफ हो सकती थी। बोबके पास ज्यादा सोचनेका समय नहीं था। उसने जल्दीमें लीवर नहीं खैंचनेका निर्णय (decision) किया और बच्चेकी जान चली गयी। उसके बाद कई सालों बोबने अपनी निवृत जिंदगी आरामसे गुजारी।

हममेंसे ज्यादातर लोग यह कहानी सुनके सोचेंगे कि बोब वर्तन पुर्ण रूप (completely) से अनैतिक (immoral), दोषित (faulty) और

ष्ठुर (heartless) था।

लेकिन दूसरी नज़रसे देखा जाये तो हम सब ऐसा वर्तन हररोज करतें हैं। आप सब सोचेंगे की हम ऐसा वर्तन कर ही नहीं सकते। सच तो ये है कि सिर्फ २०० (200) डोलर्स का दान (donation) करके हम दुनियाके गरीब देशोंमें किसिकी जान बचा सकते हैं। लेकिन सामान्य जीवनमें मशगुल (absorbed in day to day life) हम लोग ऐसा सोच नहीं सकते कि २०० डोलर्स का दान नहीं दे के हम भी उपर वाली कहानीमें बोब ने जो विकल्प चुना (chose the option) था वही विकल्प चुनते हैं। यह बात का हमें पता नहीं चलता क्योंकि मरने वाले बच्चें हमारी नज़र के सामने नहीं होते हैं।

औस्ट्रेलिया का फिलसुफ (philosopher) पीटर सिंगर जो प्रिंस्टन युनिवर्सिटीमें पढाता है, अपनी आय (income) का पांचवा हिस्सा (fifth part) अकाल राहत संगठनों (famine relief organizations) को दान में दे देता है। उसका मानना है कि “जब से मैंने समाचार पत्रोंमें अकाल पीडित (famine suffering) लोगों की तसवीरें देखी, जब कई विध्यार्थी अपनी निजि (pocket expense) खर्च के पैसोंमें से दान मांगने आते थे, तब मैंने सोचा, इतना ही क्यों?, ज्यादा क्यों नहीं”।

क्या यह मुमकीन (possible) है कि हम तय (decide) कर सकें कि कितना दान देना उचित (appropriate) है? नीचे दिये हुए निबन्धमें पीटर सिंगर अपने कुछ असाधारण विचार(extraordinary thinking) पेश (shows) करता है और दिखाता है की अमरिकाके आम नागरिक का दुनियाके गरीब लोग प्रति (towards) क्या कर्तव्य (duty) है। वह मानता है कि उसका अपनी आय (income) का पांचवा हिस्सा दान में दे देना शायद काफी नहीं है।

ब्राज़िलियन फिल्म “सेंट्रल स्टेशन” में डोरा एक निवृत (retired) शिक्षिका (teacher) है, जो अपना गुजारा (day to day expenses) स्टेशन पर अनपढ (illiterate) लोगोंके लिये पत्रों लिख के करती है। एक बार अचानक उसे १००० डोलर्स (1000 dollars) कमाने की तक मिलती है। इसके लिये उसे एक बेघर (homeless) बच्चेको समजा-पटाके एक निश्चित (a certain address) पते पर भेजना होता है। डोरा को बताया गया है की किसी धनिक (rich) देशका अमीर कुटुम्ब (richfamily) वह बच्चेको गोद (adopt) लेना चाहता है। वह बच्चेको निर्धारित पते (designated address) पर पहुंचा देती है और उसको १००० डोलर्स मिल जाते हैं। वह उसमें से थोडा पैसा एक नया टी।वी। सेट खरीदने में खर्च करती है और अपनी नयी प्राप्ति (acquisition) का आनन्द लेने में मशगुल (occupied) हो जाती है। लेकिन थोडे दिनों बाद उसके पडौशी उसका मज़ा किरकिरा (spoil) कर देते हैं। उसके पडौशी डोराको बतलातें हैं कि जो बच्चा उसने भेजा था उसकी उम्र गोद लेने के लिये ज्यादा थी और इसी लिये वह बच्चेको मारके उसके अन्दरके शारिरीक अवयव (internal organs) दूसरें रोगी लोगोंकी शरीरमें रोपण (transplant) करने के लिये बेचे जायेंगे। शायद डोराको पेहलेसे ऐस शक था, लेकिन उसने अपने दिल की बात नहीं सुनी थी, लोभ (greed) जो उसको था, नया टी।वी बसाने का। लेकिन अब जब उसके पडौशीयोंने डोराको साफसाफ शब्दोंमें सुना दिया तो वह रातभर सो नहीं पायी। सुबह उठके डोरा निश्चय (decides) करती है की व बच्चेको वापीस लेके रहेगी।

मानो (suppose) कि डोरा उसके पडौशीयों को कहेती की ये दुनियामें गुजारा (day to day expense) करना बहुत मुश्कील है, पडौशीयोंके पास भी तो नये टी।वी। सेट्स हैं, और उसके लिये नया टी। वी। खरीदने बच्चेको बेचने का ही रास्ता है तो उसमें क्या गलत बात है। आखिरमें (ultimately) वह बच्चा एक बेघर (homeless) सडकपे रहने वाला बच्चा ही तो था। ऐसा कहनेसे फिल्म देखने वाले लोग तुरंत डोराको शैतान (satan) समजने लगेंगे। डोरा को फिल्ममें अच्छा दिखाने का एक ही रास्ता है, और वो ये है की उसको काफी खतरा मोडके (taking risk) भी किसी भी तरह बच्चेको बचाना पडेगा।

मुवीके अंतमें, दुनियाके अमीर देशोंके सिनेमाघरोंमें, श्रोताएं (audience) बहुत जल्दीसे डोराको शैतान समज लेंगे अगर उसने वह बच्चेको अपने खुदके एपार्टमेंटसे भी अच्छे घरमें न भेजा होता तो। लेकिन हकीकत ये है कि अमरिकाके कई लोग बिन जरूरी चीज़ों पर ईतना ज्यादा खर्च करतें हैं कि उसमें से अगर थोडा भी पैसा लोग परोपकारी संस्थाओं (charitable agencies) को दान में दे तो वह पैसा गरीब देशोंके जरूरतमन्द(in need) बच्चों के लिये जिवतदान (life saving) बन सकता है।

यह सब बातें सवाल उठाती है: अंतमें एक ब्राज़िलियन शिक्षिका जो एक बेघर बच्चेको शरिर के अंगोका व्यौपार करने वालों को बेचती है और एक साधारण अमरिकी नागरिक जिसके पास एक टी। वी। है ओर बेहतर टी। वी। खरीदता है, उनमें नैतिक (moral) तौर से क्या फर्क है, खास करके जब कि वोह जानते हैं की उतना पैसा वोह अगर किसी अच्ची संस्थाको(organization) देके दुनियाके कई देशोंमे गरीब बच्चोंकी जान बचा सकतें हैं?

अलबत्त (ofcourse), दोनों परिस्थितियोंमे काफी फर्क है जिसकी वजहसे हमारी नैतिक सोच अलग होती है। जो बच्चा आपकी नज़रके सामने है उसको मौतके मुंहमे धकेलना बहुत कठीन और निष्ठुर बात है। कोई बच्चा, जिसे आपने कभी देखा नहीं है, उसकी जान बचाने के लिये की गयी दान की अपील ठुकराना अलग और आसान बात है। फिरभी व्यवहारिक फिलोसोफी (practical philosophy) की द्रष्टिसे दोनों बात गलत है।

हम लोग भी युनिसेफ या ओक्ष्फेम जैसी संस्थाओं को दान दे के कईं बच्चोंकी जान बचा सकतें हैं। कुछ विशेषग्य़ों (experts) का अनुमान है की सिर्फ २०० डोलर्स का दान बडी आसानीसे (easily) किसी एक रोगीष्ठ (diasesed)sz २ साल के बच्चे को ६ साल के तंदुरस्त बच्चे में रूपांतर कर सकता है- जो कि यह उम्र में बच्चे को रोगसे मरने कासब से ज्यादा खतरा होता है। उपर बताये हुए फिलोसोफर पीटर उंगर ने अपने लेखमें वाचकों को अपील की है वोह अपना क्रेडीट कार्ड का उपयोग करके और युनिसेफ (टेलीफोन नंबर ८००-३६७-५४३७) या ओक्ष्फेम अमेरिका (टेलीफोन नंबर ८००-६९३-२६८७) को कोल कर के पैसे दान कर सकतें हैं और किसीकी जान बचा सकतें हैं।

Tuesday 21 April 2009

गुजराती शादी

मैं गुजरात से हूँ और हमारे यहाँ शादियाँ के पहले "संजी" होता है. हिंदी में इसे "संगीत" कहते हैं. संजी की रात औरतें और आदमी मिल कर गरबा करते हैं और गाना गातें हैं. घर के बच्चे इस रात नाच गाना तैयार कर के सब के सामने पेश करते हैं और घर के बुजुर्ग भी नाचते और गाते हैं. किसी भी शादी में यह रात मेरा सब से मन पसंद रात होता है. पिछले साल मेरी चचेरी बेहेन की शादी में मैं और मेरे भाई बेहेन ने मिल कर एक नाच पेश किया. दूल्हा और दुल्हन ने हमारा नाच बहुत पसंद किया और बहुत खुश थे. उस रात मेरे पिता जी और उनके भाई बेहेन भी साथ साथ गाये और नाचे. इसलिए मुझे संजी इतना पसंद है क्यूंकि यह मौका था पूरे परिवार को साथ वक़्त गुजारने का. जब मेरे बड़े भाई की शादी होगी मैं संजी में खूब नाचूंगी और सब को भी नाच्वऊंगी.

Monday 20 April 2009


सिख पंजाबी का शादी आनंद कारज कहेते है. सिख शादी बहुत ख़ुशी होती है. अक्सर सिख शादी प्रेम शादी नहीं होती है. शादी के पहेले रिश्तेदार आते है और मज़ा करते है. लोग गाने गेट है और कहानियों सुनाये देते है. लड़कियों का हाथे पर मेहँदी लगते है. जब शादी का दिन आती है, लोग गुरद्वारा जाते है. वहा शादी होती है. लड़का और लड़की गुरु ग्रन्थ साहिब का आगे बेठ थे है. गुरु ग्रन्थ साहिब से चार बार दोनों घूमना फिरना करते है. साडा दिन के लिए लोग गाने गेट है और नाचते है. खाना भी खाते है सरिमोनी के बाद. शाम में दावत होती है. बहुत लोग वहा जाते है और मज़ा करते है.

Wednesday 8 April 2009

जन्माष्टमी


जन्माष्टमी एक हिंदू त्यौहार है जो श्री कृष्ण के जनम दिन की खुशी में मनाया जाता है। उसके अगले दिन लोग उपवास रखते है और फिर रात को बारा बजे तक जग कर भगवन श्री कृष्ण का जनम दिन मानते है। सुबह जल्दी उठकर औरते छोटे बछो के पैर घर के बहार बनती है जिससे यह लगता है की कृष्ण घर में प्रवेश हो रहे है। और बहुत सारी रस्मे है जो लोग जन्माष्टमी पर मानते है। रात भर भजन होता है। आधी रात को छोटे कृष की मूर्ति को नलय जाता है, झूला मैं डाला जाता है, और फिरसे पूजा करतें है। आदमी लोग एक के ऊपर एक खड़े होतें है और एक लटकता हुआ मटका फोड़ते हैं। लोग खाते नहीं है और पूरा दिन पानी भी नहीं पीतें है। लोग बहुत खुश होतें है क्यूंकि कृष्ण भगवान् विष्णु का अवतार है।

शादी के रस्मे

दक्षिण भारत की शादिया उत्तर भारत से बहुत अलग हैं। पंजाबी, गुजरती, और सिन्धी शादियाँ अवश्य बडे धूम धाम से की जाती हैं लेकिन दक्षिण भारत में संगीत, मेंहदी जैसे रस्मे नही होती। में आँध्रप्रदेश से हूँ और यहाँ की शादियाँ बहुत ही अलग हैं। में दो रस्मों के बारे में बात करूंगी। पहले रस्म को 'काशी यात्रा' कहा जाता हैं। यह रस्म शादी के पहले होती हैं। दूल्हा पूजा करता हैं और फिर कहता हैं की शादी करने के बजाय वह काशी जाना चाहता हैं और अपना जीवन भगवान् सो समर्पित करना चाहता हैं। हाथ में चाता लेकर और लकड़ी के चप्पल पहेनकर वह निकलता हैं। दुल्हन के पिता और भाई दुल्हे को रोकने और मनाने की कोशिश करते हैं। दूसरा रस्म को 'स्नाताकुम' या 'धागे की रस्म' कहा जाता हैं। इस रस्म में दुल्हे के घर में पूजा होती हैं जहाँ दुल्हे को ब्रह्मण का धागा पहनाया जाता हैं।

गणेश चतुर्थी


गणेश चतुर्थी भाद्रपद महीने में आता हैं। यह त्यौहर इसलिए मनाया जाता हैं क्यूंकि भगवान् गणेश अपने भक्तो केलिए धरती पर आते हैं। यह त्यौहार महराष्ट्र, गोआ, गुजरात और आंध्र प्रदेश में मनाया जाता हैं। पहले दिन, लोग
भगवान् गणेश की मूर्ती खरीदते हैं और घर लेजाकर पूजा करते हैं। मुंबई और दूसरे बड़े शहरों में, गणेश जी के बड़े-बड़े मूर्तियाँ भी बनाये जाते हैं और मंदिरों में पूजा की जाती हैं। अगले दस दिनों केलिए, लोग मेहमानों को अपने अपने घर बुलाते हैं और दावत देते हैं। कहते हैं की जितने गणेश की मूर्तियाँ तुम देखो, उतना ही शुभ हैं। दस के बाद, फिर से एक चोटी सी पूजे की जाती हैं और गणेश की मूर्ती का विसर्जन की जाती हैं। यह दिन बड़े धूम धमके से मनाया जाता हैं। बड़े मूर्तियों को ट्रकों पर रख कर, बैंड बाजे के साथ, रोड पर चलते हैं। लोग खूब जोश में नाचते हैं। उस दिन सब लोग जाकर रोड पर खड़े हो जाते हैं, और मनोरंजित दृश्य देखते हैं।

Tuesday 7 April 2009

लोहरी


पुनजब मे लोग लोहरी मनाई जाते है। सुभे मे बच्चे पेसे लेते है घर घर से। रत मे लोग आग के नजदीक मिलते है। यहाँ लोग कुछ खाते है और गाने गाते है। घर से लोग खाना लेट है। वहा लोग दूल्हा भट्टी का खानी सुनैजाते है। दूल्हा भट्टी अमेरिका का रोबिन हुड जेसे है। कीमती लोग से चुराके गरीब लोग गो देता था। जब लोहरी आता है, तब विंटर ख़त्म हो रही है। लोग भंगरा करते है और ढोल बजाते है। लोग तिन दिन के लिए लोहरी मनाई जाते है। घर मे या आग के पास पंजाबी लोग गचते है। पंजाबी लोग को नाचना पसंद लगता है। दुसरे घर जाके लोग गाने गाते है। सारा दिन के लिए ये करते है। बहुत खुशी त्यौहार है और लोग बोथ खुश होते है।

करवा चौथ


करवा चौथ एक हिन्दु त्योहार है जो शादी-शुदा औरतें मनाते हैं। इस दिन पर औरतें ब्रत रक थे हैं अपने पती के लम्बी जिन्दगी के लिये। पतनी का कषट उसकी प्यार का चिन्ह है। यह त्योहार कर्तिक महीने मे मनया जाता है, पुर्णिमा के चार दिन बाद और दीवाली के आट दिन पहले। करवा चौथ के रात पर विवाहित औरतें सुन्दर क्प्डे और गहने पहन्ते हैं और हाथों पर मेंहदी लगा ते हैं। जब चान्द निकलता है, तब वे उसकी पूजा कर थे हैं और भगवान को करवा चराते हैं। उसके बाद वे चलनी से अपने पती को देख थे हैं और ब्रत तोड ते हैं। औरत पहला काट अपने पती के हाथ् से खाते हैं और तब अनोख भोजन खाते हैं।
इस त्योहार के साथ बहुत कहनीओं जुडे वे हैं। अब यह त्योहार विवाहित औरत का शक्ती से मिला हुआ है लेकिन इसकी शुरूआत कुछ और है। पहले जमाने में लड्कीआं और छोटे उमर मे शादी करते थे और अपने पती के घर एक नया जगा थे। वहां वह किस्सी को भि नहीं जान्ती थी, थो वह एक सहेली बनाती थी। दोनो लड्की उमर मे साथ थे और बहन जैसे बन जते थे। करवा चौथ पर उनकी दोस्ती मनया जत था। इस दिन पर वे अपने दोस्त के यहां तोफा लेके जते थे। पती का लेना देना इस त्योहार से बाद मं आया ता।

Monday 6 April 2009

राखी

राखी एक बहुत मशहूर त्युहार है। राखी श्रवण के मेहेना में मनाया जाता है। राखी भाइयो और बहेनो के लिए एक बहुत ख़ास त्युहार है। लड़किया अपने भाई के हाथ पर एक राखी बंधती है। यह राखी का मतलब होता है की बेहें की प्यार हमेशा उसके भाई के साथ रहेगा, और वह उसकी सुर्काक्षा करेगी। दिन में बहेनो अपने भाइयो के लिया पूजा करती है। इसके बाद भाई अपने बेहेन की मुँह मीठा करता है और उसे कुछ पैसे देता है। राखी के समय बाज़ार में बहुत सारे सुंदर रखिया बिखते है।

रक्शा बन्धन



रक्शा बन्धन एक आवश्यक त्यौहार उत्तर प्रदेश मे होता है । इस त्यौहार मे बहिन अपने भाई को राखी बान्ती है । लेकिन बहुत और भी होता है इस त्यौहा मे । परीवार मे सब लोग आते है और पूजा कर्ते है । पूजा के बाद सब लोग सात सात खान खाते है । पूजा मे भी कुच मिठैईये होते है । जब बहिन रखी बान्ती है, भाई उनको पैसा देता है और आशिरवाद लेता है । तब इन दोनो मितठैये खिलाते है और टीका ल्गाते है । अन्त मे बहिन भाई को आरती कर्ती है । यह त्यौहार का अभिप्राय है की भाई अपना बहिन को शरण देता है ।

ओणम




ओणम केरला का सबसे बड़ा त्यौहार है। महाबली नाम से एक असुर रजा था केरला में और इसी के आदर में लोग ओणम मनातें है। यह उपज के कारण भी मनातें है। ओणम मलयाली कैलेंडर में चिंगम में आता है। ओणम दस दिन के लिए मनाया जाता है। साँप का नाव के खेल होतें है, कथकली नाच और गाना भी होता है। महाबली एक बड़ा राजा था लेकिन भगवान् सब उसे राजा बनने से रोक रहे थे और भगवन विष्णु एक छोटा आदमी बनकर महाबली को नरग ले जाना चाहता था। विष्णु ने उसे एक बिनती दी, की वह हर साल एक बार अपने राज्य, केरला, जा सकता था और उसके लोग को मिलने जा सकता था। तोह ओणम उसका लोटान है। पूकलम, फूल का गलीचा हर घर के आगे होता है, सब जन को नए कपड़े मिलते है, और बहुत सारा गरमा गरम काना मिलता है। एक मिठाई पयीसम नाम का सबको मिलता है। हत्थी, आतिशबाजी और बहुत सारा खेल होता है। ओणम हिंदू, मुस्लिम, यह च्रिस्तियन लोग सब मना सकते है।

Sunday 5 April 2009

नवरात्री


गुजरात में नवरात्री सबसे रंगीन त्यौहार है। अक्तूबर में यह त्यौहार नौ रत मनाया जाता है। पिछले दिन दसरा कहा जाता है। एक दिन पहले लोग गॉव का कटरे और मन्दिर में आते हैं। वे गाते और नाचते है तक सुबह पूर्व। त्यौहार के समय देवी माँ का पूजा किया जाता है। जब कारीगर उनके बाजे का पूजा करते है, कृषक उनके हल, योदा उनके आयुध, और छात्र उनके किताबें तब त्यौहार समत्प करता है। नवरात्री त्यौहार पक्षात के नजदीक है। यह दिन शरद परनीमा कहा जाता है। चंद उजाला के निचे लोग चावल खाते और दूध पीते हैं। गुजरात में देवी माँ के बारे में सबसे प्रचलित मंदिर अम्बा माता और बेचार्जी माता हैं। नवरात्री दिनों में लोग ये मंदिर घुमने जाते हैं और गुजराती लोक नाटक आनंद लेते हैं।

रक्षा बंधन


रक्षा बंधन के बारे में, एक कहानी है। बहुत हज़ार साल पहले, देवते और भूत बैर में जगड़ाते थे। देवते के रजा, इन्द्रा, बैर के बारे में बहुत परेशानी लगता था। उसकी पत्नी, इन्द्राणी, बहुत चिंतू हुई, तो उसने एक जादू बनाकर इन्द्रा की दाये कलाई पर बांधा। जादू ने इन्द्रा भूत से बचाया।

रक्षा बंधन अगस्त में मनाई जाती है। राखी का दिन में, सब भाई और बहने सुबह को उठते हैं। वे नये कपड़े पहनते हैं। भाई अक्सर कुर्ता पहनते हैं और बेहेने सलवार-कुर्ता या साड़ियाँ पहनती हैं। बहने राखी के लिए एक थाली को सजाती हैं। उसपर, रोली (तिलक के लिए), अक्षत, दिया या दीपक (भाई की आरती के लिए), मिठाईयाँ और राखी। पहले, बहने अपने भाईयो के माथे पर तिलक लगाती हैं। इस के बाद, तिलक पर कुछ अक्षत लगाती हैं। फिर वे आरती करके अपने भाईयो की कलाईयाँ पर राखी बांधती हैं। ये राखियाँ बहुत सुंदर और रंगीला हैं। मेरे बहने नही है लेकिन मेरे कुछ भाई-बहन और दोस्त मुझे राखियाँ देती हैं।

राखी बांधने के बाद, बहने अपने भाईयो को मिठाईयाँ देती हैं। फिर, भाई अपनी बहने को कुछ तोहफे देते हैं। अक्सर तोहफे पैसे हैं। भाई और बहनों दोनों को लंबा जीवन, सफलता, प्रताप और तबीयत के लिए इच्छा करते हैं। सब भाई और बहने अपने रिश्तेदारो के घर जाती हैं और नमस्कार अदला बदला करते हैं।

Ugadi

उगादी आंध्र प्रदेश में यह दिन नया वर्ष मनाया जाता है। यह हिंदू कैलेंडर में चैत्र मॉस में होता है। यह अंग्रेज़ी कैलेंडर में मार्च और अप्रैल होता है। इस्सी समय पर स्प्रिंग शुरू होता है- बोहुत जस्मीन फूल आते हैं। लोग मानते हैं की स्प्रिंग वर्ष का सबसा पहला सीज़न हैं क्योंकि नया फूल, औजार, औउर धरती पर नया जीवन आता है। नया जीवन और नया वर्ष एक साथ शुरू होते हैं। लोग सोचते हैं की इस दिन पर, भगवान् भरमा ने 'क्रेअशन' शुरू किया। इस दिन पर यह युग, कलि युग, शुरू हुआ। लोग यह भी मनाते हैं किड इस दिन पर कृष्ण ने अपना शरीर प्रबहत्सा में कुर्बानी किया।
उगादी से एक हफ्ता पहले लोग अपने घर को साफ़ करते हैं, और नया-नया कपड़े खरीदते है। उगादी दिन पर, धुप आने से पहले, लोग नहाते हैं, और अपने घर के दरवाज़े पर आम का पता रखते हैं। उगादी पच्चादी बनाया जाता है- जिस के मतलब है की जीवन में अच्छा औउर बरह दोनों है। लोग कविता भी एक दूसरे को बोलते हैं।

लोहरी


पुनजब में लोग लोहरी बनाते हैं। हर साल, लोहरी जनवरी में होती है जब पुनजब के खेतों में काफी गेहूं भरा होता है। लोहरी अक्सर बाहर मनाई जाती है। बाहर लोग एक साथ मिलकर अलाव के पास शाम को बैठाते हैं। लोहरी के दिन बच्चे गाना गाते हुए एक घर से दुसरे घर जाते हैं। बच्चे दूल्हा भट्टी के गाने गाते हैं। दूल्हा भट्टी एक चोर था जो गरीब लोगो की मदद करता था और उनकी अधिकारों के लिए लुरता था। यह गाना गाने वाले बचों को लोगों से मिठाई मिलती है और कभी कभी उनको पैसे भी मिलते हैं। जो सब कुछ बच्चों को मिलता है, उसको लोहरी कहते हैं और यह सब कुछ लोहरी के रात बांटा जाता है।

रात को मूँगफली और फुलिया आग में फेंक जाते हैं अग्नि के लिया, जो एक आग का भगवन है। लोहरी में लोग अग्नि को पूजा करते हैं अलाव के पास और परसाद बनते हैं। परसाद पाँच चीजों से बना होता है -- मूँगफली, फुलिया, गचुक, तिल, और गुर। पंजाबी लोग अपने घरों मे लोहरी बनाते हैं। घर पर लोग काफी रंगीन कपड़े पहनाते हैं और नाचते हैं । लोग काफी भंगरा और गीधा करते हैं।

नवरात्रि


नवरात्रि एक हिंदू त्यौहार है। नवरात्रि संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है नौ रातें। यह त्यौहार साल में दो बार आता है। एक शरद नवरात्रि, दूसरा है बसन्त नवरात्रि। नवरात्रि के नौ रातो में तीन हिंदु देवियों पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ में स्वरुपों पुजा होती है जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं। नवरात्रि वर्ष में दो बार आते हैं - चत्र मास में और क्वार या आश्विन मास में।

नवरात्रि पुरे भारतीय में मनाई जथा है। सब लोग शक्ति की पूजा करते हैं। जो भी अप्पको चन्हिया वह भगवान् शक्ति दे सकती हैं । वे सबकी अच्छा जीवन दे सकती है। दुर्गा पूजा महिशसुरा मरने की खुशी में मनाई जथा है। बंगाल में दुर्गा पूजा बहुत बड़ा त्यौहार है। जोभी घर से दूर रहेते हैं, वह घर वापस आते हैं। माँ अपने बेटे और बेतिया से मिलते हैं, पत्नी अपने पती से मिलते।

राखी


राखी एक त्योहार है जो भाई और बहन मनाते है. रखी की दिन पर परिवार बहुत ख़ुशी से मानथे जाते हैं. इस त्योहार पर भाई और बहन अपने कर्म मानथे हैं. मेरे परिवार में हम राखी मानथे हैं. राखी पर बहन भाई के कलाई पर रस्सी बाँधते हैं. यह रस्सी को राखी खाते हैं. इस का मतलब है की भाई अपनी बहन की रक्षा करता है. राखी श्रवण मई मानाइ जाती है. इस दिन पर पूरा चाँद होता है. पहले रखीयाँ सोना और रेशमी से बनते थे, लकिन अब रस्सी से बनते है. रखीयाँ बहुत सुंदर होते हैं. जब मै चोट्टी थी, मै अपनी भाई के लिये राखी बनाती थी. राखी की दिन पर, मै अपनी भाई की कलाई पर बाँधती थी. फिर मरे भाई मुझको पैसे देता था. हम दोनों एक दुसरे को कुछ मीटा खिलाते थे.

राखी-बंधन

मेरा मन पसंद त्योहार है राखी। यह मेरा पसंदीदा त्योहार इसलिए हैं क्योकि इसमें मेरी बहन भारत में मुझे हर सल् एक हाथ में बंधने के लिए एक राखी भेजती हैं। यह त्योहार हिन्दी कलेंडर में श्रवण महीने का हैं। मेरी बहन भारत में से एक रक्षा-सूत्र भेजती हैं और यह धागा से राक्षस भयभीत रहते हैं। दुसरे लोग जब राखी-बंधन मानते हैं, भाई और बहन मुह में एक दुसरो से मिठैया खिलते हैं। जब बहन (खून से या सिर्फ़ अच्छी दोस्त) राखी देती हैं भाई से, तो भाई उसको तोफा और संरक्षण देते हैं।

भारत की इतिहास में बहुत वक्त ऐसा है जब बहन भाई से संरक्षण मांगती हैं। रानी कर्णावती ने एक राखी हुमायूँ को भेजा था जब वह बहादुर शाह से इराती थी। राखी एकजुटता और सगोत्रता से भी भेजता हैं। भारत के स्वतंत्र के वक्त में बहुत राखी लोगो ने भेजी थी।


-अनुज शाह

Raksha Bandhan


रक्षा बंधन हर साल भारत में मनाया जाता हैं. पूर्णिमा के वक्त पर, हर बहें अपने भाई के हाथ पर एक राखी बांधती हैं. हर भाई का ज़िमादारी हैं के उनके बहें को संभालना हैं और यह राखी इसका प्रतिक हैं. इस त्यौहार का भी एक कहानी हैं. बलि प्रलाध का पोता था और एक महान राक्षश रजा था. वह भगवन विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था. लेकिन इन्द्र (वर्षा का भगवन) और बलि के बीच में जब युद्ध हुआ, विष्णु को इन्द्र को बचाना पड़ा और बलि को पाताल में चोदना पड़ा. बलि को पता था के उनके विष्णुजी उन्हीके बाला के लिए पाताल में डाला पड़ा. विष्णुजी उनके उपासना से खुश हो कर, उनके राजत्व का पहरा बनगया. लक्ष्मी माँ को बहुत दुखी हुई उनके पति को ऐसे देख कर. उन्होने एक ब्राह्मण औरत बन कर, बलि के राजत्व में आकर बलि से पुछा अगर वह उनके राजत्व में रहे सकती हैं. बलि ने उनको अपने बहें जैसे समजकर लक्ष्मीजी को राजत्व में रहेने दिया. लक्ष्मीजी के आने के बाद, राजत्व सफल बनगया. एक दिन, पुर्णिमा के वक्त प्र, लक्ष्मीजी ने बलि के हाथ प्र एक राखी बांध कर, उनके सौभाग्य के लिए पूजा किया. बलि को इतना कुशी हुआ के उसने लक्ष्मीजी को एक वादा दिया. लक्ष्मीजी के कौनसे भी इचा, रजा बलि पूरा करेगा. लक्ष्मीजी ने उसे अपने पताजी (भगवन विष्णु) वापस माँगा. बलि को यह बात समज नहीं आ रहा था. फिर, लक्ष्मीजी और भगवन विष्णु ने अपने असली रूप में बदल्गाये. फिर, रजा बलि को समाज आया के उनके उपासना की वजय से लक्ष्मीजी और भगवन विष्णु अपने आपसे दूर हुए. इसी तरह, रक्षा बंधन शुरू हुआ. हर सल्, बुहेनें अपने भाइयों के हाथ पर राखी बांधते हैं और भाइयों वादा लेते हैं की वे उन्हें रक्षा करेंगे और उन्हें करची देते हैं.

कृष्ण जन्माष्टमी


कृष्ण जन्माष्टमी भारत का एक प्रसिद्द त्यौहार है. जन्माष्टमी अगस्त या सितम्बर के प्रारंभ में पड़ता है. इस साल अगस्त १४ आयेगा. सब लोग जन्माष्टमी की प्रतीक्षा करते है क्योकि उस दिन पर भागवान कृष्ण धरती पर प्रकट हुए. वे अँधेरी और आंधी रात प्रकट हुए,कुकर्मी लोग को मरने के लिए और धाम को बहाल करना. जन्माष्टमी की दिन पर लोग उत्साह से मानते है. भक्त लोग भजन गाते है और संगीत वधे बजाते है. कृष्ण के दर्शन मूर्ति रूप मै करते है. सामान्यत लोग कृष्ण लीला का नाटक मै हिस्सा लेते है. दिन में अभिसेका भी होता है, जहा कृष्ण को दूध से धोते है. लोग खूब खाना बनाते है, १०८ प्रकार के, लेकिन दिन में नहीं खाते है क्योकि खाने उन सब के लिए नहीं है. आधी रात कृष्ण की प्रकट समय है तो सब लोग उनको खाना प्रधान करते है. इस समय लोग नाचकर बजन गेट है. फिर प्रशाद का खाते बता जाता है और लोग घर जाकर सो जाते.

नवरात्रि

बचपन से मैंने बहुत सरे हिन्दुस्तानी त्यौहार मनाया लेकिन मुझे नवरात्रि का त्यौहार अधिक मनपसंद है। यह त्यौहार ज्यादा गुजुरती और बंगाली लोग मनाते हैं। इसका अर्थ नौ रातें, इसी लिए नौ रातें और दस दिन तक मनाया जाते हैं। यह त्यौहार लगभग सेप्टेम्बर या अक्टोबर महीनों में आता है। यह त्यौहार देवी दुर्गा जो गुर्गा माता है उसके नाम पर समर्पित किया है। दुर्गा को भारतीय लोग शक्ति की देवी कहते हैं। ये नौ दिन में पहले तिन दिन देवी दुर्गा , उसके बाद तिन दिन देवी लक्ष्मी , और अन्तिम के तिन दिन देवी सरस्वती को समर्पित करना जाता है। समाज के सब लोग रातों में मिलके डंडिया रास और गरबा का नृत्य करते हैं। और बहुत अच्छा खाना बना के साथ में भोजन करते हें। सबसे लोग रंगीन और सुंदर कपडे पहनता हैं। बहुत सरे पूजा होती है। पुराने दिनों में यह प्रथा थी कि किसानें देवी को पूजा करके ज्यादा उपज होने का आशीवार्द मांगते थे। कोई पुरे सब नौ दिन उपवास करते हैं। दसवाँदिन को वीजय दशमी दिन कहता है और गुजुरत में जलेबी गांन्तियाँ खाकर यह दिन मानते है। जब में दस साल की थी टीबी मेरी मौसी ने मेरे लिए हिन्दुस्तानी से ख़ास रिगीं चोली भेजी थी और मैनें यह नवरात्री में फंकी पुरी रत डंडिया रास किए थे। और बहुत मज़ा आया।

वैसाखी

केशगढ़ आनंदपुर साहिब के पास से 1699 के वैसाखी त्योहार, पर, गुरु गोबिंद सिंह, दसवीं गुरु सिखों के अकाल खालसा की स्थापना की. गुरु गोबिंद, सब के अनुयायियों के लिए भारत पर वैसाखी आनंदपुर में उसे मिला था. गुरु गोबिंद सिंह ने एक तलवार से एक तम्बू से उभरा है और लोगों से अपने विश्वास के लिए अपनी जान देने के लिए कहा है. एक युवा सिख, स्वेच्छा से एक तम्बू में गुरु का पालन किया. कुछ ही समय के बाद, गुरु अकेले अपनी तलवार खून से लथपथ साथ, आये और एक दूसरे स्वयंसेवक के लिए पूछा. एक दूसरे सिख आगे और फिर गुरु के तम्बू में, उसे ले गया और फिर कदम अकेले, अपनी तलवार और खून से लथपथ दिखाई दिया. यह एक तीसरा, चौथा और पांचवा स्वयंसेवक के लिए दोहराया गया था. के रूप में बहुत से कहा कि गुरू के पाँच सिखों को मार डाला था विश्वास भीड़ बहुत, कमज़ोर बने. वह जल्द ही तम्बू के फिर से, इस बार सभी पाँच सिखों कौन है और अच्छी तरह से जीवित थे और पगड़ी और है कि अन्य प्रतीकों में तैयार के बाद बाहर आया बाद से सिख पहचान का प्रतीक हो. उन्होंने कहा कि पंज प्यारी ने पाँच सिखों बुलाया है - प्रेमिका पाँच। एक चाल में अपने कुलनाम छोड़ा - पाँच और सिंह ने आम नाम लिया, साहस की जरूरत के एक अनुस्मारक "शेर" अर्थ. एक ही समय में, गुरु ने सिख औरते कौर कुलनाम दे दिया. गुरुजी तो बैठ गये पाँच से पहले और उसके आरंभ करने के लिए उन से पूछा. अकाल की सेवा करने के लिए एक के जीवन का कुल आत्मसमर्पण का यह अधिनियम, के कालातीत एक, और गुरु गोबिंद सिंह के चरणों में सिख धर्म बनाया. उसके बाद कई शताब्दियों के लिए पंजाब में हिंदू के सभी परिवारों की, पहली नर बच्चे को एक सिख के रूप में नियत करता था.

Saturday 4 April 2009

वसाखी

वसाखी एक सिक्ख त्यौहार है। लोग एप्रिल १३ या १४ में मनाये जाते है। सिक्ख लोग सरे दुनिया में मनाये जाते है। लोग खालसा के शुरुआत के लिए मनाते है। खालसा १६९९ में शुरू हुआ। सिक्ख लोग फसल के लिए भी मनाये जाते है। इस समय में सिक्ख अपने गुरु के शिक्ष्ण के बारे में सोचते है। लोग बहुत खुशी, रंगीन और दिल से मनाये जाते है।
वसाखी की कहानी यह है: गुरु गोबिंद सिंह जी फसल की त्यौहार पर खेसा से बाहर आया। वह सिक्ख लोगो को पुछा की " अगर आप अपनी जान देने का तयार है, उंदर आइये। पंज सिक्ख आदमी तयार थे। एक एक कर गुरु जी बाहर आयें और उसकी तुल्वार खून पर रिस रहा था। लोग बहुत पुरेशन हुए। पंज आदमी बाहर आयें। गुरु जी ने आदमी को खालसा में बपतिस्मा दिया। लोग नाचते, गाते, और परेड करते है। नगर कीर्तन भी होते है। लोग नगर में गुरु ग्रन्थ साहिब से गाने और भजन गाते है।
लन्दन में वसाखी का त्यौहार त्रफालगर स्क्वेर में मनाया जाता है। एक बडा मेला भी होता है।

Friday 3 April 2009

संक्रान्ति



आंधरा प्रदेश में, संक्रान्ति एक बड़ा त्यौहारहै। यह त्यौहार अनाज काटने के समय में आता है। इसलिए यह त्यौहार किसानों के लिए, बहुत खांस है। इस मेले के बारे में, एक कहानी है। इस कहानी है कि इस समय पर, आसमान में, सूरज यात्रा शुरू करता है। संक्रान्ति पर सूरज, उसका स्वगीर्य रस्ते पर, मकर राशि में जाता है। "ग्रेगोरियन कलेंडर" में, संक्रान्ति जनवरी महीनें में आता है।

आंधरा में, लोग संक्रान्ति चार दिन के लिए मानते हैं। पहले दिन का नाम "भोगी" है। इस दिन में, लोग शाम को बड़े अलाव बनते हैं, और नाचते हैं, और जानते हैं। दूसरी दिन का नाम संक्रान्ति है। यह दिन सारा संक्रान्ति त्यौहार में, मुख्य दिन हैइस दिन में, सब लोग नए कपड़े पहनते हैं, और भगवान को पूजा करते हैं। भगवान, परिवार, और दोस्तों को मिटाइयां देते हैं। चौथा दिन का नाम "मुकानुमा"' है। यह दिन मांसाहारी लोग बहुत माँसाहारी खाना खाते हैं। पहले तिन दिनों के लिए, यह लोग माँसाहारी खाना नही खाते। संक्रान्ति में, एक बुरा चीज़ है कि बहुत अवैध पणन है।

आन्ध्र में, संक्रान्ति के दौरान भी, "हरिदास" लोग गर-गर जाकर, चावल के लिए पहुंचते हैं। संक्रान्ति के दौरान रंगोली प्रतियोगिते बहुत प्रचलित है। भारतीय लोग संक्रान्ति त्यौहार सारे भारत देश मानते हैं, लेकिन उस के लिए अलग नाम हैं। तमिल नाडू में, "पोंगल" है और पंजाब में, "लोड़ी" है।

Wednesday 1 April 2009

पोंगल

पोंगल दक्षण भारत में बहुत महेत्वा है। पोंगल के पहले थीं साल महीने लोग बीज ज़मीं में डालते है और जन्वेरी में जब यह बीज उगते है तब बहुत खुशी मनाते है। पोंगल सबसे बड़ा त्योहार है और चार दिन चलता है। यह त्योहार थान्क्स्गिविंग के जैसे होता है। पोंगल चौदह या पंधरा जन्वेरी कर आता है। इस दिन बहुत पूजा होती है और लोग अच्छे कपड़े पहेंते है और बहुत अच्छा खाना बन्ता है। पहला दिन भगवन इन्द्र की पूजा होती है। इन्द्र बारिश का भगवन है और अच्छे पौदों के लिए बारिश जरूरी है। इस दिन बहुत नाच गाना होती है। दुसरे दिन चावल को उबला जाता है और सूर्य भगवन के पूजा होती है। सब लोग नया कपड़े पहेन्ते है। घर के उंदर और बहार रंगोली डालते है। तीसरे दिन सब लोग को पोंगल किलय जाता है और गई को पूजा करके उनको भी खाना दिया जाता है। गई के आरती भी करते है। चौथा दिन मिटा पोंगल बनाया जाता है और भाइयों के लिए पूजा करते है और आरती करते। पोंगल के समय बहुत खुशी होती है।

Monday 23 March 2009

शादी के रिवाज

हमारे में शादी बहुत धूम - धाम से होती है। कई बार शादिया तीन चार दिन के लिए चलती है। मेरे पापा के तरफ़ एक एसा रिवाज है जिसको मामेरू कहते है। इस रिवाज में दुल्हन के मामा बहुत सारे पैसे और उपहार देते है। जैसी मामा की हैसियत हो उतना वह देता है। कभी कभी रकम एक हजार से लेकर दस लाख भी हो सकती है। एक और रिवाज जो भारत में सारे निभाते है वह सिन्दूर का रिवाज है। सिन्दूर शादी शुदा औरते ही लगाती है अपने पति के लंबे जीवन के लिए। सिन्दूर लाल इस लिए होता है क्योंकि वह प्यार और शक्ति का संकेत है। इस रसम से ही शादी पुरी होती है। ये दोनों रिवाज हमारे में बहुत खास है।

शादी की रिवाज़

दूसरे लोग दूसरे जैसे शादी करते हैं और कोई तरह के पारिवारिक रिवाज होतें हैं। बंगाली शादी में कोई दिलचस्प रसम होते हैं। शादी के समय के पहेले "दोधी मंगल" होता है। यह रसम सुबह दिन निकलने की समय पर दूल्हा और दुल्हन के घर में होता है। दस शादी-शुदा औरत दूल्हा और दुल्हन के साथ एक नस्दीक नदी पर जातें हैं। वहां गंगा की निमंत्रण करते हैं एयर नदी की पानी से दूल्हा और दुल्हन को नहाते हैं। बादमे, दूल्हा और दुल्हन खाना मिलता है। इस समय पर दूल्हा और दुल्हन को बहुत अच्छे से खाना खाना होगा क्योकि फिर खाना शादी के बाद ही खाना खा पाएँगे। खाना में भूना मछली और चावल मिलता है। दही और चुल्हिया खाने के बाद भी आता है। जब यह सब रसम कथं होता हेयर, फिर दूल्हा और दुल्हन नय कपडे पहेंठे हैं। "दोधी मंगल" के बाद शादी के पहेले कोई और भी रसम होते हैं.

शादी की रिवाज़

शादी के एक दिन पहले सब औरत मिल के मेंहदी की रिवाज़ करते है। कोई शादीशुदा औरत दुल्हन के हाथ और पैर पर मेंहदी लगाती है। यह शुभ माना जाता है। इसके साथ बहुत सारे गाने भी गाये जाते है, और कोई बच्चे एक नाटक करते है। आम तौर पर इस रिवाज़ में विधवा औरत नही आती है, लेकिन हमलोग अपने पारिवार में यह बात नही मानते है, और विधवा औरतो भी इस रिवाज़ में शामिल हो सकती है।

हमारे परिवार में शादी होने के बाद पति पत्नी कुछ खेल भी खेलते है। सबसे मज़ेदार खेल अन्घुटी का खेल होता है। जब पति पत्नी एक साथ पहली बार घर आते है, तो हम एक बड़ी बाल्टी, जो दूध से भरा रहता है, तैयार रखते है। हम पति और पत्नी के अन्घुतिया इस बाल्टी में डालते है, और दूध को बहुत मिलाते है। इसके बाद पति और पत्नी एक साथ अपने हाथ बाल्टी में डालते है, और जिसे भी अनघूटी पहले मिलती है, वह इस खेल को जीतता है।

Sunday 22 March 2009

शादी का निमंत्रण

मुझे तमिल शादियाँ बहुत पसंद है। में तमिल नाडू से हूँ और मैंने बहुत सारी तमिल शादियाँ देखि है। मेरी सब बहने और भाइयों के शादी सब तमिल शादी ही है। मुहुर्थुम तमिल शादियों mएं बहुत आवश्यक है। यह तीन दिन के शादी में दूसरे दिन में होता है। यह जल्दी सुबह को होता है। मुहुर्थुम सुबह ७ या ८ बजे को शुरू होता है लेकिन साडू ही बता सकता है की यह कब हो सकता है। जब मुहुर्थुम होता है तब असली शादी होती है। नालान्गु भी तमिल शादियों में होता है। यह शादी के बाद होता है। नालान्गु में पति और पत्नी दोनों आपस में खेलतें है। जैसे की एक पानी के कटोरी में कुछ छोटा सा चीज़ होता है और पति और पत्नी दोनों हाथ डालते हैं और वोह चीज़ को ढूँढ़ते है। जो पहले वोह चीज़ हो ढूँढ लेता है वह जीत जाता है। तमिल शादियाँ बहुत लम्बी होती है लेकिन बहुत मज़ा आता है!

शादी के रिवाज

सिन्धी शादी में बहुत रिवाज हैं। शादी से पहले, मेहेंदी के रिवाज होती है। मेहेंदीवाली दुलहन और अपनी सहेलियों के हाथ और पैरों पर मेहेंदी लगाती हैं। इसके बाद, संगीत के रिवाज होती हैं, जिसमे कई तरह के गाने गाई जाती हैं। नवग्रही पूजा से पहले, सागरी के रिवाज होती हैं। दुलहा के रिश्तेदार दुलहन के घर में आते हैं और उसको फूलों के सात सजाते हैं। दुलहा की बहन दुलहन को पाँच तरह के फल और मिठाइयाँ देती हैं, और एक दूसरे को तोहफे देते हैं।

शादी में, मधुपर्क के रिवाज होती हैं। मधुपर्क एक घी और मधु का मिलाव हैं। दुलहन दुलहा को पानी तीन बार देती हैं। पहली बार, दुलहा अपने पैर पर डालता हैं, दूसरी बार अपने शरीर पर, और तीसरी बार, वह पानी पीता हैं। इसके बाद वह थोड़ा मधुपर्क खाता हैं। प्राण कहा जाती हैं और दुलहा और दुलहन आग के साथ फेरे लेते हैं।

एक आम सिन्धी के रिवाज दत्तर हैं। शादी के बाद, दुलहन घर जाती हैं, और दुलहा के परिवार एक परत में, दो 'किलो' नमक लाते हैं। दुलहन के परिवार एक पंखा लाते हैं। दुलहा और दुलहन मौली और छुहारे पूजास्थान में डालते हैं। दुलहा आशार्वाद के लिए, नमक में कुछ पैसे और तोहफे डालते हैं। दुलहन बहुत नमक उठाती हैं और अपने पति के हाथ में डालती हैं। इसके बाद, दुलहन के ससुराल दुलहन के साथ वही करते हैं।

मेरी परिवार के विवाह सम्भंधी रीती रिवाज़ - प्रतिक नरूला

हमारे परिवार में शादी से एक दिन पहेले शाम के समय घर के एक कोने में एक मटका पानी का भर के उस के ऊपर गुलाबी रंग का कपडा रखते है जोकि लड़का यह लड़की के मामा के घर से आता है . और उस के साथ ही मीठे पीले चावल भी रखते है .
फिर घर के सदस्य एक कागज़ पर उस परिवार के जितने भी पुरूष है उनके नाम लिखते है फिर लड़का या लड़की अपने हाथो पर मेंहदी लगाके उस कागज़ पर अपने हाथ छापते है. फिर वह पीले चावल सब रिश्तेदारों को बांटेते है

मुझे यह रिवाज़ बिलकुल भी नहीं समझ आते है लेकिन यह रिवाज़ बहुत सालो से चलता ही आरहा है

शादी का प्रथा

मै गुजराती शादी के प्रथा के बारे मे बताऊंगा। शादी के समय 'हाथएअलो' होता है। इस में दुलहन की साडी दुल्हा का दुपट्टा के साथ बंधवाता जाता है और जोड़ा के दाहिना हाथे दोरी के साथ बंधवाता जाते है। यह सब कुछ अनन्त बन्धन सूचित करता है। उसके बाद जोड़ी भगवन को प्रार्थना करके मांगते की उनको शक्ति और ईमानदारी दे। एक और गुजराती शादी का प्रथा ' वरमाला' है। बुराई प्रभाव को बचाने के लिए जोड़ी के गले बंधवाते जाते है। क्या ये करता मुझे नहीं मालूम। इस के बाद, दुलहन का बाप उनको दुल्हा को देता है. बहुत और गुजराती प्रथाये बाकि है लेकिन मै किसी और को आप को बताने का कम रखूंगा।

शादी की रस्म



हिंदू की शादी में, बहुत रस्म हैं। दोनों रस्म मंगलासुत्रम और सपतापादी हैं। मंगलासुत्रम एक हिंदू की शादी लक्षण है। मंगलासुत्रम में, एक कञन गहना एक पीला धागा पर लगता है। यह पीला धागा, हल्दी के साथ बनता है। जैसा अंग्रेज़ी की शादी में, शादी की अंगूठी है, वैसा हिंदू की शादी में, मंगलासुत्रम है। तेलुगु, कनाडा, और तमिल बशाएं में, मांगल्य का नाम "ताली" है। यह रस्म दक्षिण भारत से, उतर भारत गया। मंगलासुत्रम शब्द का मतलब, "शुभ धागा" है। हिंदू की शादी में, यह मंगल्सुत्रम बहुत ख़ास है। शादी के दौरान दूल्हा, दुल्हन का गरदन पर मंगलासुत्रम के साथ तीन गिरह गांठता है। कुछ हिन्दुस्तानी संस्कृतियों में, ये तीन गिरह श्री ब्रहम्मा , श्री विष्णु, और श्री शिवा दिखलाते हैं।
हिंदू की शादी में, एक और रस्म, सपतापादी का नाम है। "सपतापादी" शब्द का मतलब "सात कदम" है। ये रस्म, जीवन का यात्रा दिखलाता है। शादी में, यह रस्म करते है सो दुल्हन और दूल्हा दोनों, यह यात्रा हाथ में हाथ चलेंगे। वे दोनों, आग के चारों ओर सात कदम चलते हैं। हिंदू ख्याल कहता है कि अगर दुल्हन ओर दूल्हा यह सपतापादी करें, तो दोनों पुरी जीवन के लिए साथ-साथ रहेंगे। पहली कदम पैसा के लिए है ओर दूसरी कदम, भौतिक, मानस , और अशारीरिक आनन्द के लिए है। तीसरा कदम, उचित जीवन के लिए है और चौथा कदम जीवन में खुशी, प्यार, और आदर के लिए है। पांचवा कदम बच्चे के लिए है और छठवां कदम एक लम्बा जीवन के लिए है। सातवां कदम का मतलब है कि इस शादी के बाद, दुल्हन और दूल्हा पुरी जीवन में, कृपालु, और स्नेही रहेंगे।

शादी का प्रथा

शादी के सुमय भारत मे काफी कुछ होता है। एक शादी का प्रथा का नाम आरती है। आरती मे दुल्हा के वाले दुलहन के परिवार को शादी के हॉल के प्रवेश पर मिलते हैं। जो दुलहन की माँ है, वो दुल्हा को स्वागत करती है। दुलहन की माँ फिर आरती करती है दुल्हा को स्वागत करने के लिया। आरती मे एक दिवा थाली पे रखा जाता है और फिर दुल्हा के सिर के आगे और पीछे गुमया जाता है। उसके बाद दुलहन की माँ दुल्हा के माथे पर तिलक लगती है। आरती हिन्दू लोगो का प्रथा है।

एक शादी का प्रथा जो सिख लोग करते हैं, उसका नाम है जुटी छुपायी। जुटी छुपायी मे दुलहन के छोटे परिवार वाले दुल्हा के जुटे छुपा दयते हैं। वे जुटे तूब वापिस करते हैं जब दुल्हा दुल्हन की बहनों के लिया सोना दयता है और दुल्हन के चचेरा भाई और बहन को चांदी दयता है।

जीलाकर्रा बेल्लामु और मधुपर्कं

हिंदुस्तान में शादी एक ही तरह नही होते हैं। अलग स्टेट में अलग रसम होते हैं। मैं तेलुगु शादी के रस्मों के बारे में बात करूंगी। यह रसम जीलाकर्रा बेल्लामु और मधुपर्कं हैं। जीलाकर्रा बेल्लामु मैं पंडित -जी श्लोक पड़ने के बाद, दूल्हा और दुल्हन एक दूसरे के हाथ पर जीरा और गुड की गारा लगाते हैं। जीरा कडुवा है, और गुड मिटा है, और ये दोनों स्वादों अलग नहीं हो सकते हैं। जैसे पति और पत्नी का रिश्ता कभी टूट नही सकता है। मधुपर्कं इससे छोटा है। मधुपर्कं मैं, दुल्हन सफ़ेद सूती साड़ी पहेंथी है, जिस पर लाल किनारा है। दूल्हा सफ़ेद धोती पहेंथा है, लाल किनारा के साथ। सफ़ेद निर्मलता के लिए है, और लाल ताकत के लिए। ये दोनों अच्छा शादी में होना चाहिए।

शादी के सीमा शुल्क-- अनुज शाह

गुजुरत में शादी बहुत मज़ा वाली हैं। गुजराती शादी में बहुत अर्थ हैं। शादी से पहले, एक रिवाज होता हैं। रिवाज का नाम हैं मंडप मह्रुत समारोह। यह समारोह दुल्हन और दुल्हे न भाग ले, लेकिन उनके परिवार यह समारोह में भाग ले। गणेश के लिए लोग प्रार्थना करे। एक पूजा भी होती हैं। उसमे, पुजारी भगवन से प्रे करे। यह रिवाज दो दिन शादी के पहले होती हैं। एक दूसरा रिवाज हैं जान गुजरात रिवाज। यह रिवाज बहुत मज़ाकिया हैं। यह रिवाज करते हैं क्योकि नज़र निकलने के लिए। दूल्हा दुल्हन का घर जाकर उसकी माँ के पेड़ पर अदने जाता हैं। दुल्हन की मन दुल्हे का नक् पकड़ने की कोशिस करती हैं लेकिन दुल्हन नाक पकड़ने से बचने की कोशिश करता है।

शादी का प्रथा



मेरी परीवार उतर प्रदेश से है और वहां के हिन्दु शादी कई दिनों तक चलती हैं और उन दिनों में बहुत कुछ मनया जाता है। उन मे से एक रसम घोद बरहई है। इस रसम में दुल्हे के परीवारवाले दुल्हन को अपनातें हैं। शादी के एक दो दिन पहले दुल्हे के माता, बहिनों, और परीवार के और औरतें दुल्हन को तोफे देते हैं। दुल्हन बहरी सार्डी पैन्ती है लेकिन कोई गहने नहीं। दुल्हन अपना पला अपनी घोद मे रक ती है और लर्ड्के के परीवार उसमे तोफे रक ते हैं और दुल्हन को गहने से सजाते हैं। दुल्हन को मिताई भी खिलाते हैं और अशिर्वाद देते हैं।
शादी के वक्त एक रसम है सात फेरे लेना। इस रसम में दुल्हे और दुल्हन एक गांट से बन्दे वे होते हैं और हवन का चक्कर सात-सात लेतें हैं। चक्कर लते वे दुल्हे और दुल्हन शादी के वचन लते हैं और पंदित जी पूजा केर ते हैं। दोनो सात फेरे लेते हैं और एक एक फेरे पर दुसरा वचन लेतें हैं। फेरों के बाद वे पती और पतनी हो जातें हैं और् दुल्हन दुल्हे के बाया तरफ बैट ती है जिस से वह अपनी पती के दिल के करीब रहा।

शादी का प्रथा

मेरे परिवार में हिन्दुस्तानी शादी होती है मेरे मन पसंद कहावत मेंहदी है दुलहन दुलाह के लिए उसके हाथों पर और पैरों पर मेंहदी लगती है मेरे परिवार में मेंहदी लिए बहुत बड़ा पार्टी बनाते हैं दुलहन एक बहुत संदर कुर्सी पर बैठती है और सब लोग उसको देखते हैं उसके दुलाह उसको खेलाता है जब एक लड़की उसकी मेंहदी कर रही है मेंहदी पार्टी बनाया क्यों कि लोग दुलहन दुलहा के लिए संदर बनाना चाहते थे मेंहदी में दुलहा का नाम लिखते है और शादी का शाम दुलहा को उसका नाम धून्दना चाहिए
मेरे परिवार में संगीत का पार्टी भी रखते हैं इस पार्टी बहुत बढ़िया बनते और बहुत लोग बुलाते हैं दुलहन की परिवार संगीत मनाते हैं और गाना गाते हैं कभी कभी लोग नाचते लेकिन पार्टी ज्यादा गाने लिए है पहले संगीत दस दिनों लिए मनाते थे लेकिन अब एक दिनों लिए मनाते और बहुत लोग एक पार्टी में हैं अक्सर दुलहन के परिवार धोलकी बजाते और शादी का गाना गाते हैं लेकिन कभी-कभी "दीजे" भी बुलाते हैं बहुत लोग संगीत का पार्टी इंतज़ार करते हैं और इस पार्टी मेंहदी से उतरेजित हैं

शादी का प्रथा

जब एक हिंदू पंजाबी दुसरे से शादी करता है, शादी से पहले बहुत उत्सव होते हैं। पहला दुल्हा और दुल्हन कसम करते कि वे दुसरे लोग नही शादी करेंगे। उसके नाम रोक्का है। फिर मांगी होती है, जब दुल्हा का परिवार, दुल्हन का घर जाकर उनके पास तोफाह और गहने लाते हैं। उसके बाद में जब दुल्हन का परिवार दुल्हा का घर जाकर तोफाह लाते हैं, यह शागन है। फिर चुन्नी चंदना होते है। संगीत और मेहँदी सबसे बड़े उत्सव है। संगीत में बहुत ही घाने और नाचे होते हैं, शराब से। शादी से पहले वे कभी कभी अखंड पाट करते हैं। शादी के बीच में दुल्हा घोड़े पर आता है और दुल्हन के जूते दुल्हा का परिवार पैसे के लिए चोरी करती हैं। वे मज़ाकर करती हैं। शादी के बाद में लोग बहुत ही मज़ा करते हैं।

जैमाल और शादी के गीत


मेरा परीवार के शादीयो मे जैमाल कर्ते है । जैमाल एक मजा की परंपरा है । दुलहन और दुलहा एक दूसरो को माला दालते है । लेकिन इतना आसान नही है क्यो कि जैमाल एक प्रतीयोगिता है । जो दूसरे पर माला पहला दालता है वह जीत जाता है । जैमाल सब लोग कि लीये बहुत उत्तेजक होत है । अक्सर माला फूल से बना जाता है ।

जो अधीकारी के शादी हो गई वह गीत सुनाते है शादी के बाद । अक्सर हारमोनीयम और ढोलकी भी बजाते है । बधई देने कि लीये गाते है । सब लोग हसते है और मजा करते है ।

Saturday 21 March 2009

मेरे मामा के शादी

मेरे परिवार मे हिन्दुस्तानी शादी होती है, लेकिन पिछले साल मेरे मामा ने कैथोलिक लड़की के साथ शादी की. लडकी को हिन्दुस्तानी शादी और कैथोलिक शादी करना चाहती थी. उस शादी के लिये एक छोटी सी हिन्दुस्तानी शादी की. उन्होने अग्नि के सामने साथ फेरे लीये. साथ फेरे के मतलब है की शादी "लेगल" है. अग्नि के सामने और हमारे सामने मेरे मामा और उसकी पतनी ने यह साथ फेरे की.
उस के बाद, सारे सालियाँ ने मेरे मामे के जूते चुपदी. क्योंकि सालियाँ को मामा से पैसे निकालने है. मेरे मामा ने उनको पैसे दी और जूते वापस मिलगे. मेरे परिवार मे ऐसे शादी होती है. हिन्दुस्तानी शादी के बाद कैथोलिक शादी थी

शादी का प्रथा

शादी के एक दो दिन पहले दुलहा और दुलहन को पीठी लगाई जाती है। हल्दी में गुलाब जाल दाल के पीठी "पेस्ट" बनाते है। यह "पेस्ट" चहरे पे, हाथ पे, और पाँव पे लगाई जाती है। लोग कहते हैं कि यह करने से दुलहा और दुलहन के शरीर पर चमक आ जाती हैं। परिवार के सब लोगों को मौका मिलता है। और एसेसब मिलके खुशी बंटाई हैं।
महेंदी लगा के रकना...
महेंदी की रस्म में इस तरह के संगीत बजते है। महेंदी दुलहन के हाथों और पाँव पे लगाते हैं। कोई दुलहन अपने पुरे हाथों पे और कोई सिर्फ़ कोहने तक महेंदी लगती हैं। विवाह समारोह में परिवार और स्नेहीं लड़कियाँ अपने हाथों में महेंदी लगाती हैं। दुलहा का नाम महेंदी के द्दारा दुलहन के हाथों पे लिखा जाता है और दुलहा को यह दुंदना पड़ता है। उस से बहुत हँसे - मज़ा आयेंगे।

शादी का रिवाज़

यह तस्वीर मेरी परिवार का है मेरे भाई के शादी का समय।
हर हिंदू शादी का रिवाज़ एक जैसा होता है लेकिन तमिल शादी का रिवाज़ में दो अन्तर है। एक है कशी यात्रा शादी के पहले लड़के को दो चीजों में से चुन्न पड़ता है। एक है की वो शादी करे और दूसरा की वो सन्यासी बन जाए। लड़का अपना छाता जूते लकड़ी लेक्कर सन्यासी बने चल पड़ता है। तब दुल्हन के पिताजी और उसके भाई लड़के के पास जाते है और विनती करते है की संन्यास नही लो हमारे लड़की के साथ शादी करो। लड़के को दुल्हन के बाप बहुत पैसे और सामान भी देने कवाडा करते है। तब लड़का वापस आकर दूल्हा बंता है। यह कशी यात्रा कहते है। दूसरी रिवाज जो सिर्फ़ तमिल शादी में है ऊन्झ्ल कहते है। ऊन्झ्ल में शादी की बाद दूल्हा और दुल्हन एक जूला पे बेटते है सब लोग उन्हें जलाते है और गाना गाते है। इसका मतलब है के जैसे जूला उपर निचे जाता है वैसे जिंदगी में दुख और सुख दोनों आते है। कभी हम खुशी के मरे उपर है और कभी दुख के मरे निचे। लेकिन दोनों दूल्हा दुल्हन इस उंच नीच का सामना साथ करेंगे। इसे उन्जल कहते है।

Friday 20 March 2009

सिख शादी

सिख शादियाँ में बहुत सारे रस्म है। एक रस्म है चूदे की रस्म। इस रस्म में दुल्हन के मामे दुल्हन का कलाई पर चूदे पहनते है। कंगन लाल और सफेद रंग होते है। लडकी के मामे कंगन पहले दूद में डालते है। डालकर मामे दलहन के कलाई पर रखते है। उस के बाद मामियां कलीरें चूदे पर रखते है। लोग कहते है की एसे करते है क्यूंकि अगर दुल्हन ने भागने के कोशिश की तो परिवार सुन सकते है। हमारे परिवार में हम चूरा की रस्म चुन्नी की रस्म के बाद होती है। चुन्नी की रस्म यह है जब दल्हा के परिवार लडकी के घर आके दुल्हन के सर पुर चुन्नी रखते है और दुल्हन को तोफे दिये जाते है।

Sunday 15 March 2009

दहेज़ प्रथा

भारत में दहेज़ देने का रिवाज बहुत पहले शुरू हुआ था। शादी के वक्त, लड़की के पिता, लड़की को पैसे और तौफे देते थे। लेकिन लड़के वाले ने इस बात का फायदा उठाया। लड़के वाले, सामने से पैसा, गाड़ी, और अनेक महंगी चीजे मांगते थे। अगर लड़की वाले अमीर नही थे और दहेज़ केलिए पैसे नही थे फिर लड़के वाले रिश्ता तोड़ देते थे। इसी कारण, जब लड़की का जन्म होता था, tअब उसके माता - पिता परेशान हो जाते थे। आज भी कई गाँव में दहेज़ का रिवाज मौजूद हैं लेकिन बड़े शहरों में यह कम दिखाई देती हैं।
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Tuesday 10 March 2009

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चाट का स्वाद, दाम की कोई न बाद।
जिग्गेर को दीजिये, सबसे अच्छा खरे मिठाइए

"लगता है के मैंने सब कुछ मिठैया बीस रुपये में खरीदी हैं।"

दहेज प्रथा

दहेज प्रथा मुझे बिलकुल आच्छी नहीं लगती जब पति ही काम करता और उसकी बीवी नहीं करती तब भी दहेज अच्छी नहीं है घर कि प्रति बहुत काम करती प्रति को बच्चे के ध्यान रखने चाहिए और यह आसान नहीं है मुझे पता कि भारत में लोग दहेज प्रथा देना बहुत करते थे लेकिन मुझे पता नहीं कि लोग अभी करते हैं जब मेरे माता पिता ने शादी किया मेरे दादा जी दहेज दिया था मुझे यह पता क्यों कि मेरे माता पिता अभी बात करते हैं लेकिन जब उसने शादी किया औरतें आदमियों से बहुत "सुबोर्दिनिट " थी और दहेज प्रथा देना बहुत चलता था मरे दादाजी दहेज देने के कर्ण मेरी माता मैं डॉक्टर बनना चाहती हैं दहेज देने में लगता कि लड़की लड़के से अच्छी नहीं है या उनका बेटी लड़के लिए अच्छी नहीं है और मरे माता पिता दिखाना चाहते कि उनके बेटी बहुत अच्छी है मैं डॉक्टर बनने से होकर मरे माता पिता सोचते कि वे दिखादेंगे