Sunday 1 March 2009

दहेज प्रथा

हिन्दुस्तानी संस्कृति में परीवार वालों अपनी बेती कि होने वाले पती को दहेज देते हैं। दहेज में लोग पैसा, झमीन, और कीमती चीजें देते हैं। पैले जमाने में दहेज एक पिता अपनी बेटी की जमानत के लीये देता था। अगर पती को कुछ हो गया थो दहेज की मदद से लर्ड्की रहै अकती है। लेकिन अब जब वक्त बदल गया है, दहेज का रिती-रिवज भी बदलना चहिये। आज-कल जादा तर लर्ड्कीओं भी कम करने लग गयी हैं, थो वह अपनी आप पैसे कमा सक्ती हैं। इस्सी लिये इनको अपनी परीवार का पैसा कि जरुरत नहीं हैं, वह अपनी जमानत अपने बना सकती हैं। उपर से अब दहेज जमानत के लिये नहीं रहा और लर्ड्के का परीवार दहेज का उमीद रक्ता है। कई बार जब परीवार बर्डा दहेज मान्ग्ता है लर्डी वाजे नहीं दे पाते। दहेज कि वजे से लोग शादी को इन्कार भी केर देते हैं। बर्डा दहेज देना एक प्रतियोगता बन गया है और जो परीवार नहीं दे पाता अलाब पर जाते हैं। अगर शादी हो भी जाती है दहेज कि बात नहीं रुक थी है। परीवर वाले लर्डी को जला भी देते है अगर उसकी परीवार से और देहज में नहीं मिल ता। अब दहेज देना बहुत बर्डी मुसीवत बन गयी है और यह प्रथा कतम होनी चहिये।

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