Monday 23 March 2009

शादी के रिवाज

हमारे में शादी बहुत धूम - धाम से होती है। कई बार शादिया तीन चार दिन के लिए चलती है। मेरे पापा के तरफ़ एक एसा रिवाज है जिसको मामेरू कहते है। इस रिवाज में दुल्हन के मामा बहुत सारे पैसे और उपहार देते है। जैसी मामा की हैसियत हो उतना वह देता है। कभी कभी रकम एक हजार से लेकर दस लाख भी हो सकती है। एक और रिवाज जो भारत में सारे निभाते है वह सिन्दूर का रिवाज है। सिन्दूर शादी शुदा औरते ही लगाती है अपने पति के लंबे जीवन के लिए। सिन्दूर लाल इस लिए होता है क्योंकि वह प्यार और शक्ति का संकेत है। इस रसम से ही शादी पुरी होती है। ये दोनों रिवाज हमारे में बहुत खास है।

शादी की रिवाज़

दूसरे लोग दूसरे जैसे शादी करते हैं और कोई तरह के पारिवारिक रिवाज होतें हैं। बंगाली शादी में कोई दिलचस्प रसम होते हैं। शादी के समय के पहेले "दोधी मंगल" होता है। यह रसम सुबह दिन निकलने की समय पर दूल्हा और दुल्हन के घर में होता है। दस शादी-शुदा औरत दूल्हा और दुल्हन के साथ एक नस्दीक नदी पर जातें हैं। वहां गंगा की निमंत्रण करते हैं एयर नदी की पानी से दूल्हा और दुल्हन को नहाते हैं। बादमे, दूल्हा और दुल्हन खाना मिलता है। इस समय पर दूल्हा और दुल्हन को बहुत अच्छे से खाना खाना होगा क्योकि फिर खाना शादी के बाद ही खाना खा पाएँगे। खाना में भूना मछली और चावल मिलता है। दही और चुल्हिया खाने के बाद भी आता है। जब यह सब रसम कथं होता हेयर, फिर दूल्हा और दुल्हन नय कपडे पहेंठे हैं। "दोधी मंगल" के बाद शादी के पहेले कोई और भी रसम होते हैं.

शादी की रिवाज़

शादी के एक दिन पहले सब औरत मिल के मेंहदी की रिवाज़ करते है। कोई शादीशुदा औरत दुल्हन के हाथ और पैर पर मेंहदी लगाती है। यह शुभ माना जाता है। इसके साथ बहुत सारे गाने भी गाये जाते है, और कोई बच्चे एक नाटक करते है। आम तौर पर इस रिवाज़ में विधवा औरत नही आती है, लेकिन हमलोग अपने पारिवार में यह बात नही मानते है, और विधवा औरतो भी इस रिवाज़ में शामिल हो सकती है।

हमारे परिवार में शादी होने के बाद पति पत्नी कुछ खेल भी खेलते है। सबसे मज़ेदार खेल अन्घुटी का खेल होता है। जब पति पत्नी एक साथ पहली बार घर आते है, तो हम एक बड़ी बाल्टी, जो दूध से भरा रहता है, तैयार रखते है। हम पति और पत्नी के अन्घुतिया इस बाल्टी में डालते है, और दूध को बहुत मिलाते है। इसके बाद पति और पत्नी एक साथ अपने हाथ बाल्टी में डालते है, और जिसे भी अनघूटी पहले मिलती है, वह इस खेल को जीतता है।

Sunday 22 March 2009

शादी का निमंत्रण

मुझे तमिल शादियाँ बहुत पसंद है। में तमिल नाडू से हूँ और मैंने बहुत सारी तमिल शादियाँ देखि है। मेरी सब बहने और भाइयों के शादी सब तमिल शादी ही है। मुहुर्थुम तमिल शादियों mएं बहुत आवश्यक है। यह तीन दिन के शादी में दूसरे दिन में होता है। यह जल्दी सुबह को होता है। मुहुर्थुम सुबह ७ या ८ बजे को शुरू होता है लेकिन साडू ही बता सकता है की यह कब हो सकता है। जब मुहुर्थुम होता है तब असली शादी होती है। नालान्गु भी तमिल शादियों में होता है। यह शादी के बाद होता है। नालान्गु में पति और पत्नी दोनों आपस में खेलतें है। जैसे की एक पानी के कटोरी में कुछ छोटा सा चीज़ होता है और पति और पत्नी दोनों हाथ डालते हैं और वोह चीज़ को ढूँढ़ते है। जो पहले वोह चीज़ हो ढूँढ लेता है वह जीत जाता है। तमिल शादियाँ बहुत लम्बी होती है लेकिन बहुत मज़ा आता है!

शादी के रिवाज

सिन्धी शादी में बहुत रिवाज हैं। शादी से पहले, मेहेंदी के रिवाज होती है। मेहेंदीवाली दुलहन और अपनी सहेलियों के हाथ और पैरों पर मेहेंदी लगाती हैं। इसके बाद, संगीत के रिवाज होती हैं, जिसमे कई तरह के गाने गाई जाती हैं। नवग्रही पूजा से पहले, सागरी के रिवाज होती हैं। दुलहा के रिश्तेदार दुलहन के घर में आते हैं और उसको फूलों के सात सजाते हैं। दुलहा की बहन दुलहन को पाँच तरह के फल और मिठाइयाँ देती हैं, और एक दूसरे को तोहफे देते हैं।

शादी में, मधुपर्क के रिवाज होती हैं। मधुपर्क एक घी और मधु का मिलाव हैं। दुलहन दुलहा को पानी तीन बार देती हैं। पहली बार, दुलहा अपने पैर पर डालता हैं, दूसरी बार अपने शरीर पर, और तीसरी बार, वह पानी पीता हैं। इसके बाद वह थोड़ा मधुपर्क खाता हैं। प्राण कहा जाती हैं और दुलहा और दुलहन आग के साथ फेरे लेते हैं।

एक आम सिन्धी के रिवाज दत्तर हैं। शादी के बाद, दुलहन घर जाती हैं, और दुलहा के परिवार एक परत में, दो 'किलो' नमक लाते हैं। दुलहन के परिवार एक पंखा लाते हैं। दुलहा और दुलहन मौली और छुहारे पूजास्थान में डालते हैं। दुलहा आशार्वाद के लिए, नमक में कुछ पैसे और तोहफे डालते हैं। दुलहन बहुत नमक उठाती हैं और अपने पति के हाथ में डालती हैं। इसके बाद, दुलहन के ससुराल दुलहन के साथ वही करते हैं।

मेरी परिवार के विवाह सम्भंधी रीती रिवाज़ - प्रतिक नरूला

हमारे परिवार में शादी से एक दिन पहेले शाम के समय घर के एक कोने में एक मटका पानी का भर के उस के ऊपर गुलाबी रंग का कपडा रखते है जोकि लड़का यह लड़की के मामा के घर से आता है . और उस के साथ ही मीठे पीले चावल भी रखते है .
फिर घर के सदस्य एक कागज़ पर उस परिवार के जितने भी पुरूष है उनके नाम लिखते है फिर लड़का या लड़की अपने हाथो पर मेंहदी लगाके उस कागज़ पर अपने हाथ छापते है. फिर वह पीले चावल सब रिश्तेदारों को बांटेते है

मुझे यह रिवाज़ बिलकुल भी नहीं समझ आते है लेकिन यह रिवाज़ बहुत सालो से चलता ही आरहा है

शादी का प्रथा

मै गुजराती शादी के प्रथा के बारे मे बताऊंगा। शादी के समय 'हाथएअलो' होता है। इस में दुलहन की साडी दुल्हा का दुपट्टा के साथ बंधवाता जाता है और जोड़ा के दाहिना हाथे दोरी के साथ बंधवाता जाते है। यह सब कुछ अनन्त बन्धन सूचित करता है। उसके बाद जोड़ी भगवन को प्रार्थना करके मांगते की उनको शक्ति और ईमानदारी दे। एक और गुजराती शादी का प्रथा ' वरमाला' है। बुराई प्रभाव को बचाने के लिए जोड़ी के गले बंधवाते जाते है। क्या ये करता मुझे नहीं मालूम। इस के बाद, दुलहन का बाप उनको दुल्हा को देता है. बहुत और गुजराती प्रथाये बाकि है लेकिन मै किसी और को आप को बताने का कम रखूंगा।

शादी की रस्म



हिंदू की शादी में, बहुत रस्म हैं। दोनों रस्म मंगलासुत्रम और सपतापादी हैं। मंगलासुत्रम एक हिंदू की शादी लक्षण है। मंगलासुत्रम में, एक कञन गहना एक पीला धागा पर लगता है। यह पीला धागा, हल्दी के साथ बनता है। जैसा अंग्रेज़ी की शादी में, शादी की अंगूठी है, वैसा हिंदू की शादी में, मंगलासुत्रम है। तेलुगु, कनाडा, और तमिल बशाएं में, मांगल्य का नाम "ताली" है। यह रस्म दक्षिण भारत से, उतर भारत गया। मंगलासुत्रम शब्द का मतलब, "शुभ धागा" है। हिंदू की शादी में, यह मंगल्सुत्रम बहुत ख़ास है। शादी के दौरान दूल्हा, दुल्हन का गरदन पर मंगलासुत्रम के साथ तीन गिरह गांठता है। कुछ हिन्दुस्तानी संस्कृतियों में, ये तीन गिरह श्री ब्रहम्मा , श्री विष्णु, और श्री शिवा दिखलाते हैं।
हिंदू की शादी में, एक और रस्म, सपतापादी का नाम है। "सपतापादी" शब्द का मतलब "सात कदम" है। ये रस्म, जीवन का यात्रा दिखलाता है। शादी में, यह रस्म करते है सो दुल्हन और दूल्हा दोनों, यह यात्रा हाथ में हाथ चलेंगे। वे दोनों, आग के चारों ओर सात कदम चलते हैं। हिंदू ख्याल कहता है कि अगर दुल्हन ओर दूल्हा यह सपतापादी करें, तो दोनों पुरी जीवन के लिए साथ-साथ रहेंगे। पहली कदम पैसा के लिए है ओर दूसरी कदम, भौतिक, मानस , और अशारीरिक आनन्द के लिए है। तीसरा कदम, उचित जीवन के लिए है और चौथा कदम जीवन में खुशी, प्यार, और आदर के लिए है। पांचवा कदम बच्चे के लिए है और छठवां कदम एक लम्बा जीवन के लिए है। सातवां कदम का मतलब है कि इस शादी के बाद, दुल्हन और दूल्हा पुरी जीवन में, कृपालु, और स्नेही रहेंगे।

शादी का प्रथा

शादी के सुमय भारत मे काफी कुछ होता है। एक शादी का प्रथा का नाम आरती है। आरती मे दुल्हा के वाले दुलहन के परिवार को शादी के हॉल के प्रवेश पर मिलते हैं। जो दुलहन की माँ है, वो दुल्हा को स्वागत करती है। दुलहन की माँ फिर आरती करती है दुल्हा को स्वागत करने के लिया। आरती मे एक दिवा थाली पे रखा जाता है और फिर दुल्हा के सिर के आगे और पीछे गुमया जाता है। उसके बाद दुलहन की माँ दुल्हा के माथे पर तिलक लगती है। आरती हिन्दू लोगो का प्रथा है।

एक शादी का प्रथा जो सिख लोग करते हैं, उसका नाम है जुटी छुपायी। जुटी छुपायी मे दुलहन के छोटे परिवार वाले दुल्हा के जुटे छुपा दयते हैं। वे जुटे तूब वापिस करते हैं जब दुल्हा दुल्हन की बहनों के लिया सोना दयता है और दुल्हन के चचेरा भाई और बहन को चांदी दयता है।

जीलाकर्रा बेल्लामु और मधुपर्कं

हिंदुस्तान में शादी एक ही तरह नही होते हैं। अलग स्टेट में अलग रसम होते हैं। मैं तेलुगु शादी के रस्मों के बारे में बात करूंगी। यह रसम जीलाकर्रा बेल्लामु और मधुपर्कं हैं। जीलाकर्रा बेल्लामु मैं पंडित -जी श्लोक पड़ने के बाद, दूल्हा और दुल्हन एक दूसरे के हाथ पर जीरा और गुड की गारा लगाते हैं। जीरा कडुवा है, और गुड मिटा है, और ये दोनों स्वादों अलग नहीं हो सकते हैं। जैसे पति और पत्नी का रिश्ता कभी टूट नही सकता है। मधुपर्कं इससे छोटा है। मधुपर्कं मैं, दुल्हन सफ़ेद सूती साड़ी पहेंथी है, जिस पर लाल किनारा है। दूल्हा सफ़ेद धोती पहेंथा है, लाल किनारा के साथ। सफ़ेद निर्मलता के लिए है, और लाल ताकत के लिए। ये दोनों अच्छा शादी में होना चाहिए।

शादी के सीमा शुल्क-- अनुज शाह

गुजुरत में शादी बहुत मज़ा वाली हैं। गुजराती शादी में बहुत अर्थ हैं। शादी से पहले, एक रिवाज होता हैं। रिवाज का नाम हैं मंडप मह्रुत समारोह। यह समारोह दुल्हन और दुल्हे न भाग ले, लेकिन उनके परिवार यह समारोह में भाग ले। गणेश के लिए लोग प्रार्थना करे। एक पूजा भी होती हैं। उसमे, पुजारी भगवन से प्रे करे। यह रिवाज दो दिन शादी के पहले होती हैं। एक दूसरा रिवाज हैं जान गुजरात रिवाज। यह रिवाज बहुत मज़ाकिया हैं। यह रिवाज करते हैं क्योकि नज़र निकलने के लिए। दूल्हा दुल्हन का घर जाकर उसकी माँ के पेड़ पर अदने जाता हैं। दुल्हन की मन दुल्हे का नक् पकड़ने की कोशिस करती हैं लेकिन दुल्हन नाक पकड़ने से बचने की कोशिश करता है।

शादी का प्रथा



मेरी परीवार उतर प्रदेश से है और वहां के हिन्दु शादी कई दिनों तक चलती हैं और उन दिनों में बहुत कुछ मनया जाता है। उन मे से एक रसम घोद बरहई है। इस रसम में दुल्हे के परीवारवाले दुल्हन को अपनातें हैं। शादी के एक दो दिन पहले दुल्हे के माता, बहिनों, और परीवार के और औरतें दुल्हन को तोफे देते हैं। दुल्हन बहरी सार्डी पैन्ती है लेकिन कोई गहने नहीं। दुल्हन अपना पला अपनी घोद मे रक ती है और लर्ड्के के परीवार उसमे तोफे रक ते हैं और दुल्हन को गहने से सजाते हैं। दुल्हन को मिताई भी खिलाते हैं और अशिर्वाद देते हैं।
शादी के वक्त एक रसम है सात फेरे लेना। इस रसम में दुल्हे और दुल्हन एक गांट से बन्दे वे होते हैं और हवन का चक्कर सात-सात लेतें हैं। चक्कर लते वे दुल्हे और दुल्हन शादी के वचन लते हैं और पंदित जी पूजा केर ते हैं। दोनो सात फेरे लेते हैं और एक एक फेरे पर दुसरा वचन लेतें हैं। फेरों के बाद वे पती और पतनी हो जातें हैं और् दुल्हन दुल्हे के बाया तरफ बैट ती है जिस से वह अपनी पती के दिल के करीब रहा।

शादी का प्रथा

मेरे परिवार में हिन्दुस्तानी शादी होती है मेरे मन पसंद कहावत मेंहदी है दुलहन दुलाह के लिए उसके हाथों पर और पैरों पर मेंहदी लगती है मेरे परिवार में मेंहदी लिए बहुत बड़ा पार्टी बनाते हैं दुलहन एक बहुत संदर कुर्सी पर बैठती है और सब लोग उसको देखते हैं उसके दुलाह उसको खेलाता है जब एक लड़की उसकी मेंहदी कर रही है मेंहदी पार्टी बनाया क्यों कि लोग दुलहन दुलहा के लिए संदर बनाना चाहते थे मेंहदी में दुलहा का नाम लिखते है और शादी का शाम दुलहा को उसका नाम धून्दना चाहिए
मेरे परिवार में संगीत का पार्टी भी रखते हैं इस पार्टी बहुत बढ़िया बनते और बहुत लोग बुलाते हैं दुलहन की परिवार संगीत मनाते हैं और गाना गाते हैं कभी कभी लोग नाचते लेकिन पार्टी ज्यादा गाने लिए है पहले संगीत दस दिनों लिए मनाते थे लेकिन अब एक दिनों लिए मनाते और बहुत लोग एक पार्टी में हैं अक्सर दुलहन के परिवार धोलकी बजाते और शादी का गाना गाते हैं लेकिन कभी-कभी "दीजे" भी बुलाते हैं बहुत लोग संगीत का पार्टी इंतज़ार करते हैं और इस पार्टी मेंहदी से उतरेजित हैं

शादी का प्रथा

जब एक हिंदू पंजाबी दुसरे से शादी करता है, शादी से पहले बहुत उत्सव होते हैं। पहला दुल्हा और दुल्हन कसम करते कि वे दुसरे लोग नही शादी करेंगे। उसके नाम रोक्का है। फिर मांगी होती है, जब दुल्हा का परिवार, दुल्हन का घर जाकर उनके पास तोफाह और गहने लाते हैं। उसके बाद में जब दुल्हन का परिवार दुल्हा का घर जाकर तोफाह लाते हैं, यह शागन है। फिर चुन्नी चंदना होते है। संगीत और मेहँदी सबसे बड़े उत्सव है। संगीत में बहुत ही घाने और नाचे होते हैं, शराब से। शादी से पहले वे कभी कभी अखंड पाट करते हैं। शादी के बीच में दुल्हा घोड़े पर आता है और दुल्हन के जूते दुल्हा का परिवार पैसे के लिए चोरी करती हैं। वे मज़ाकर करती हैं। शादी के बाद में लोग बहुत ही मज़ा करते हैं।

जैमाल और शादी के गीत


मेरा परीवार के शादीयो मे जैमाल कर्ते है । जैमाल एक मजा की परंपरा है । दुलहन और दुलहा एक दूसरो को माला दालते है । लेकिन इतना आसान नही है क्यो कि जैमाल एक प्रतीयोगिता है । जो दूसरे पर माला पहला दालता है वह जीत जाता है । जैमाल सब लोग कि लीये बहुत उत्तेजक होत है । अक्सर माला फूल से बना जाता है ।

जो अधीकारी के शादी हो गई वह गीत सुनाते है शादी के बाद । अक्सर हारमोनीयम और ढोलकी भी बजाते है । बधई देने कि लीये गाते है । सब लोग हसते है और मजा करते है ।

Saturday 21 March 2009

मेरे मामा के शादी

मेरे परिवार मे हिन्दुस्तानी शादी होती है, लेकिन पिछले साल मेरे मामा ने कैथोलिक लड़की के साथ शादी की. लडकी को हिन्दुस्तानी शादी और कैथोलिक शादी करना चाहती थी. उस शादी के लिये एक छोटी सी हिन्दुस्तानी शादी की. उन्होने अग्नि के सामने साथ फेरे लीये. साथ फेरे के मतलब है की शादी "लेगल" है. अग्नि के सामने और हमारे सामने मेरे मामा और उसकी पतनी ने यह साथ फेरे की.
उस के बाद, सारे सालियाँ ने मेरे मामे के जूते चुपदी. क्योंकि सालियाँ को मामा से पैसे निकालने है. मेरे मामा ने उनको पैसे दी और जूते वापस मिलगे. मेरे परिवार मे ऐसे शादी होती है. हिन्दुस्तानी शादी के बाद कैथोलिक शादी थी

शादी का प्रथा

शादी के एक दो दिन पहले दुलहा और दुलहन को पीठी लगाई जाती है। हल्दी में गुलाब जाल दाल के पीठी "पेस्ट" बनाते है। यह "पेस्ट" चहरे पे, हाथ पे, और पाँव पे लगाई जाती है। लोग कहते हैं कि यह करने से दुलहा और दुलहन के शरीर पर चमक आ जाती हैं। परिवार के सब लोगों को मौका मिलता है। और एसेसब मिलके खुशी बंटाई हैं।
महेंदी लगा के रकना...
महेंदी की रस्म में इस तरह के संगीत बजते है। महेंदी दुलहन के हाथों और पाँव पे लगाते हैं। कोई दुलहन अपने पुरे हाथों पे और कोई सिर्फ़ कोहने तक महेंदी लगती हैं। विवाह समारोह में परिवार और स्नेहीं लड़कियाँ अपने हाथों में महेंदी लगाती हैं। दुलहा का नाम महेंदी के द्दारा दुलहन के हाथों पे लिखा जाता है और दुलहा को यह दुंदना पड़ता है। उस से बहुत हँसे - मज़ा आयेंगे।

शादी का रिवाज़

यह तस्वीर मेरी परिवार का है मेरे भाई के शादी का समय।
हर हिंदू शादी का रिवाज़ एक जैसा होता है लेकिन तमिल शादी का रिवाज़ में दो अन्तर है। एक है कशी यात्रा शादी के पहले लड़के को दो चीजों में से चुन्न पड़ता है। एक है की वो शादी करे और दूसरा की वो सन्यासी बन जाए। लड़का अपना छाता जूते लकड़ी लेक्कर सन्यासी बने चल पड़ता है। तब दुल्हन के पिताजी और उसके भाई लड़के के पास जाते है और विनती करते है की संन्यास नही लो हमारे लड़की के साथ शादी करो। लड़के को दुल्हन के बाप बहुत पैसे और सामान भी देने कवाडा करते है। तब लड़का वापस आकर दूल्हा बंता है। यह कशी यात्रा कहते है। दूसरी रिवाज जो सिर्फ़ तमिल शादी में है ऊन्झ्ल कहते है। ऊन्झ्ल में शादी की बाद दूल्हा और दुल्हन एक जूला पे बेटते है सब लोग उन्हें जलाते है और गाना गाते है। इसका मतलब है के जैसे जूला उपर निचे जाता है वैसे जिंदगी में दुख और सुख दोनों आते है। कभी हम खुशी के मरे उपर है और कभी दुख के मरे निचे। लेकिन दोनों दूल्हा दुल्हन इस उंच नीच का सामना साथ करेंगे। इसे उन्जल कहते है।

Friday 20 March 2009

सिख शादी

सिख शादियाँ में बहुत सारे रस्म है। एक रस्म है चूदे की रस्म। इस रस्म में दुल्हन के मामे दुल्हन का कलाई पर चूदे पहनते है। कंगन लाल और सफेद रंग होते है। लडकी के मामे कंगन पहले दूद में डालते है। डालकर मामे दलहन के कलाई पर रखते है। उस के बाद मामियां कलीरें चूदे पर रखते है। लोग कहते है की एसे करते है क्यूंकि अगर दुल्हन ने भागने के कोशिश की तो परिवार सुन सकते है। हमारे परिवार में हम चूरा की रस्म चुन्नी की रस्म के बाद होती है। चुन्नी की रस्म यह है जब दल्हा के परिवार लडकी के घर आके दुल्हन के सर पुर चुन्नी रखते है और दुल्हन को तोफे दिये जाते है।

Sunday 15 March 2009

दहेज़ प्रथा

भारत में दहेज़ देने का रिवाज बहुत पहले शुरू हुआ था। शादी के वक्त, लड़की के पिता, लड़की को पैसे और तौफे देते थे। लेकिन लड़के वाले ने इस बात का फायदा उठाया। लड़के वाले, सामने से पैसा, गाड़ी, और अनेक महंगी चीजे मांगते थे। अगर लड़की वाले अमीर नही थे और दहेज़ केलिए पैसे नही थे फिर लड़के वाले रिश्ता तोड़ देते थे। इसी कारण, जब लड़की का जन्म होता था, tअब उसके माता - पिता परेशान हो जाते थे। आज भी कई गाँव में दहेज़ का रिवाज मौजूद हैं लेकिन बड़े शहरों में यह कम दिखाई देती हैं।
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Tuesday 10 March 2009

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चाट का स्वाद, दाम की कोई न बाद।
जिग्गेर को दीजिये, सबसे अच्छा खरे मिठाइए

"लगता है के मैंने सब कुछ मिठैया बीस रुपये में खरीदी हैं।"

दहेज प्रथा

दहेज प्रथा मुझे बिलकुल आच्छी नहीं लगती जब पति ही काम करता और उसकी बीवी नहीं करती तब भी दहेज अच्छी नहीं है घर कि प्रति बहुत काम करती प्रति को बच्चे के ध्यान रखने चाहिए और यह आसान नहीं है मुझे पता कि भारत में लोग दहेज प्रथा देना बहुत करते थे लेकिन मुझे पता नहीं कि लोग अभी करते हैं जब मेरे माता पिता ने शादी किया मेरे दादा जी दहेज दिया था मुझे यह पता क्यों कि मेरे माता पिता अभी बात करते हैं लेकिन जब उसने शादी किया औरतें आदमियों से बहुत "सुबोर्दिनिट " थी और दहेज प्रथा देना बहुत चलता था मरे दादाजी दहेज देने के कर्ण मेरी माता मैं डॉक्टर बनना चाहती हैं दहेज देने में लगता कि लड़की लड़के से अच्छी नहीं है या उनका बेटी लड़के लिए अच्छी नहीं है और मरे माता पिता दिखाना चाहते कि उनके बेटी बहुत अच्छी है मैं डॉक्टर बनने से होकर मरे माता पिता सोचते कि वे दिखादेंगे

Friday 6 March 2009

दहेज प्रथा

दहेज की प्रथा भारत में बहुत सालो से चली आ रही है। दहेज उसको कहते है जो पैसे यह तोफे लड़की वाले लड़के वाले को देते है शादी के वक्त। दहेज बहुत पहले भारत में शुरू हुआ था जब उच्ची जाति के लोग लड़की वाले के तरफ़ से शादी का तोफा देते थे। उसके अलावा शादी के कर्च में हाथ बताना के लिए भी दहेज दिया जाता था। कई लोग यह भी समजते है की दहेज एक तरह का बिमा है जो लड़की को बुरे बर्ताव से बचाता है।
जो भी हो, मुझे लगता है की दहेज बहुत बुरी चीज़ है और शादी को एक व्यापार बना देता है। कई बार लड़की से पहले दहेज देखा जाते है और यह बिल्कुल ग़लत बात है। दहेज देना यह लेना एक गैरकानूनी कम है और सब लोग को उसके खिलाफ होना चाहिए।

Wednesday 4 March 2009

दहेज़ प्रथा

मेरे ख़याल से दहेज़ देना और माँगना अच्छी बात नहीं है। यह बहुत पुरानी संस्कृति है मगर मेरा मानना है की जितनी भी पुरानी संस्कृति हो तब भी ग़लत तरीके से नहीं करना चाहिए। मेरे पापा ने मेरी माँ को शादी करने से पहले दहेज़ नहीं माँगा। में भी सोचती हूँ के में ऐसे लड़के के साथ नहीं शादी करूंगी जिससे दहेज़ चाहिए। भारत में सिर्फ़ यह नहीं होता है। यहाँ भी हिन्दुस्तानी लोग दहेज़ लेतें है। अगर लड़का अच्छा हो और अमेरिका में रहता हो तो वह लड़की के परिवार से बहुत पैसा मांगते है। यह मैं नहीं मानती हूँ। बहुत सारे लड़कियों के परिवार के पास इतना पैसा नहीं होता है और इसी के कारण बच्ची जो लड़की होतें हैं उन्हें और जब लड़की पैदा होती हैं तो बहुत बार भारत में उन्हें मार देतें है क्योंकि वह परिवार दहेज़ नहीं दे पा सकता है।

Tuesday 3 March 2009

दहेज़ प्रथा

भारत मे दहेज़ प्रथा अभी भी होता है। पहले तो काफी लोग दहेज़ प्रथा को मानते थे पर अब सुब लोगों को यह सही नही लगता है। अज-कल लोगों को लड़कीयो की सम्मान करनी चाहिय। इसलिय लोगों को अपनी बतिया दुसरे परिवार को बचनी नही चाहिय। अगर लोग दहेज़ प्रथा को मानते हैं तो वे सिर्फ पैसों के बारे मे सोच सोच रहे हैं। लड़किया संपत्ति नहीं है। अगर लोग लड़कियों की चिन्ता नही करते हैं तो फिर दूसरा परिवार वह लड़की से ठीक से बात नहीं करेंगे। कभी तो दुसरे परिवार के लोग काफी खराब होते हैं। दुसरे परिवार के लोग काफी खराब होते हैं। वे लोग लड़कि को मार दयते हैं अगर लड़कि के माता-पिता बहुत पैसे नहीं देते हैं। इन कारणों की वजह से दहेज़ प्रथा ख़त्म क्रर देना चाहिए।

दहेज़ प्रथा

आज कल भी भारत में दहेज प्रथा होता है। मुझे लगता है की ये परंपरा बहुत पुराणी है और आज के ज़माने में मतलब गायब हो गया है। पहेले दिनों में, बीवी के माँ-बाप पति के परिवार को बहुत पैसे देते थे। ये पैसे के अपेक्षा के वजा से माँ-बाप अपने बेटी को नफरत से देक्ठे थे। खबी-खबी ये लड़कियां को बहुत मरते भी थे जब दहेज़ प्रथा का दम नहीं मिल पाए। इस लिए ये परंपरा कभी शुरू नहीं होना चाहिय

कोई लोगों पुराणी ज़माने पर अभी तक रहेते हैं। हल की लोग भी शादी के समय पर ये सब करते हैं। लकिन, अब दूसेरह चीज़ भी देना पड़ता है। सब पाठी के परिवार को अच्छे अच्छे गहने देनअ भी पड़ना होता है। और उसके बाद, उत्सव मैं तोफे फिर देने होते हैं। पहेले ज़माने मैं दहेज़ प्रथा होता था क्योंकि पाठी शादी के बाद सब कमाता था और घर पर रोटी लता था। बीवी इस के लिए पैसे देने पदथे थे। लकिन आज कल, बीवी भी बहुत कम करती हैं। दोनों बहुत पैसे कमाते हैं, तो फिर ये सब क्यों करना है?



hai hai aur aaj ke

Monday 2 March 2009

दहेज प्रथा

हिंदुस्तान मे दहेज प्रथा पुराने ज़माने मे था। दहेज प्रथा है जब लड़की शादी करती है, तब उसको आदमी की परिवार को थोफा देना है। पेसे हो सकते है, या चीजे या लैंड. आज कल दहेज प्रथा इतना नही होता लकिन कहीं जगा होता है. दहेज प्रथा का मतलब है की आदमी लडकी की रक्शा करें. मेरा कयल है की दहेज प्रथा अभी भी होती है, लकिन लोगों आपने मूँ बंद रकते हैं. दहेज प्रथा भूत ख़राब स्य्स्तेम है, और नहीं होना चाहिये. लडकी को लड़का को क्यूँ पैसे दाने पडते है? दहेज प्रथा. पहले दहेज प्रथा सिरव आमिर लोग करते थे. पैसे लडकी के लिया थे, लडके के परिवार का लिये नहीं था. 1961 मे दहेज प्रथा इल्लीगल हो गया लकिन हर रोज़ लोग करते है. दहेज प्रथा लडकी की दिमाग़ी स्वास्थ्य के लिये आच्छा नहीं है.

दहेज प्रथा

दहेज प्रथा भारत में, दहेज प्रथा आज कल अवैध हैं. मुझे यकीन नहीं आता की आज भी भारत में, दहेज दी जाती हैं. दहेज प्रथा पुराने ज़माने का सोच था. लेकिन आज भी, गरीब लोगों को दहेज देना या लेना पड़ता हैं. अजीब बात हैं, लेकिन यह प्रथा सिर्फ भारत में होती हैं. दुसरे देशियों में, मैं ने यह बात कभी नहीं सुना हैं. पुराने ज़माने में, जब दहेज दी जाती थी, सोना, चंडी और हीरों दी जाती. लेकिन आज कल, लोग टीवी, गाडियां और घर भी दी जाती हैं. यह बात भी हैं की लड़की के माता-पिता, जब वह घर से जाती हैं, शौक से उनको उपहार देते हैं. मेरे ख्याल से, यह दहेज नहीं है क्योंकि लड़के के परिवार ने यह नहीं माँगा. मुझे पूरा यकीन है के जब मैं शादी करूंगा, मेरे परिवार मेरी होने वाली पतनी से दहेज नहीं मांगेगे. मेरे परिवार में, हम दहेज नहीं मांगते क्योंकि, हमें लगता हैं की अगर तुम्हें दहेज मांगने की ज़रुरत हैं, तुम अभी तक शादी के लिए तयार नहीं हो और तुम्हें ज्यादा पैसा कमाना पड़ना हैं.

दहेज प्रथा

आज कल के ज़माने में धुनिया ने बहुत सफलता पाई है और वोह पुराने रिवाजों को भूल के बहुत आगे निकेल चुकी है मगर आज भी कुछ देश है जैसे के हमारा अपना देश हिंदुस्तान जहाँ पर अभी भी दहेज प्रथा का रिवाज़ चलता है . हिंदुस्तान बहुत आगे निकल सकता है और सबसे अच्हा देश बन सकता है लेकिन इन ही रिवाजों ने हमे रोक कर रखा है.मेरे ख्याल से दहेज प्रथा खुद की मर्ज़ी के खलफ नहीं होनी चाहिए और अगर कोई देना नहीं चाहता है तो उस को नहीं कुछ कहना चाहिए और उस का साथ देना चाहिए लेकिन हिंदुस्तान में एसा नहीं होता और रिश्तेदार जबेर्दुस्ती करते है लड़की वालो से और वोह यह परिस्थिति रख्देते है के अगर तुम दहेज नहीं दुगे तो हम शादी नहीं होने देगे .

यह रिवाज़ मुझे भिल्कोल भी नहीं पसंद है . मेरे ख्याल से लड़की वाले लड़के वाले को अपनी बेटी दे रहे है इतना ही बहुत होता है .इस रिवाज़ को बदलना ही होगा और यह रिवाज़ लड़की के परिवार को समजना होगा के वह अपनी बेटी को अय्से घर में भेज रहे है जहाँ पर वह दहेज को मानते है वहाँ पर उनकी बेटी का क्या आदर होगा . तो यह रिवाज़ बदल सकता है मगर लोगो को अपनी सोच को सबसे पहले सुधारना होगा .

दहेज प्रथा

दहेज प्रथा एकआछी चीझज थी, लेकिन अब बहुत गड़बड़ हो गया । आज कल सब लोग पैसा कमा सकते है । औरत भी कमासकते है । जब औरत काम कर सकते, तब दहेज प्रथा की क्या जरूरत क्या है? दहेज प्रथा अब कुच नही करता है । आब बस खराब लोग पैसा लेते है बिना मतलब से । कुच लोग पैस सालओं के लीये पैसा मिंते है । बोलते है की उन्के बेट लड़की को चोडेगा । ये बिल्कुल ठीक नही है । कुच मतलब नही है, बस लोग पैसा के लीये करते है और लड़ की परीवार करती है क्यो की सब डरे है की आदमी की परीवार कुच करेगा । इस लीये, मतलब एक आछा चीज नही है ।

Sunday 1 March 2009

दहेज़ प्रथा

दहेज़ प्रथा एक पुराने ज़माने की परम्परा है जो बहुत सालों पहले शुरू किया गया था। नियम के मुताबिक जब पती-पतनी एक नई जिंदगी शुरू करना चाहते है तो लड़की के परिवार को उन्हें पैसा देना चाहिए जिससे वे अपनी जिंदगी शुरू कर सके। क्योंकि पतनी अपने ससुराल में रहती है, ससुराल वालों को उसका बोझ उठाना पड़ता है। इस लिए ससुराल वाले दहेज़ नही दिया करते। वैसे तो यह कारन ठीक लगता है लेकिन असलियत में दहेज़ प्रथा ऐसे नहीं चलता है। परमपरा के नाम पर ससुराल वाले अक्सर दहेज़ प्रथा का नाजायज़ फ़ायदा उठाते हैं। इतिहास में हजारों कहानिया हैं जिनमे ससुराल वाले अपनी बहु को परेशान करते हैं क्योंकि उसके माता-पिता दहेज़ नही दे पाए। कभी कभी इन कहानियो का अंत इस्से भी ख़राब होता है। जो प्रथा अच्छे वजह के लिए शुरू किया गया था अब खतरनाक बन चुका है. आज की दुनिया में दहेज़ प्रथा की कोई ज़रूरत नही है और हिंदुस्तान में इसे और सकती से रोका जाना चाहिये।

दहेज़ प्रथा

दहेज़ प्रथा एक संस्कृति परंपरा था। पिछले दिनों में दुल्हन के बाप ने दुल्हन को पैसा, चीजे, और सोना देता था। बाप बहुत कुछ देता था ताकि अगर अपनी बेटी का पति को कुछ होगया थो उसकी बेटी का सेकुरिती है। पिछले दिनों में यह एक अच्छी बात था क्योंकि उस दिनों में अद्वंसद टेक्नोलॉजी नही था और लोग बीमारी से मरते थे। जमाना बदल गया है और आजकल यह बात नही है। अब दहेज़ प्रथा संस्कृति परम्परा नही है। अब दहेज़ प्रथा एक क्षम्य है लालच के लिए। आजकल बहू कि ससुर और सास सिर्फ़ पेसे नही मांगते - वे गाडियाँ और सामान मांगते है। ये चीजे बेटी के लिए नही है ले किन सास और ससुर के लिए है।
मेरे ख्याल में, दहेज़ प्रथा बहुत बुरी परंपरा है। आजकल लोग इस कि चीज़ नही करना चाहिए। यह उचित नही है बहू के लिए, उसके माँ-बाप के लिए, और बहू कि पति के लिए। अगर बहू कि बाप बहुत कुछ नही दे सकता तो शादी में तेंशुं होता है। पति और पत्नी के बीच एक सचाई रिश्ता नही बन सकता। भारत में, अगर बहू के बाप बहुत कुछ नही दे सकता, बहू के सास और ससुर बहू को आग लगते है या मारते है। पेसे देने बाप का फर्ज़ नही है - जमानत है। मेरे परिवार में हमे यह पुरानी चीज़ नही करते। शादी में सब लोग सिर्फ़ प्यार करने का फर्ज़ है।

दहेज प्रथा

हिन्दुस्तानी संस्कृति में परीवार वालों अपनी बेती कि होने वाले पती को दहेज देते हैं। दहेज में लोग पैसा, झमीन, और कीमती चीजें देते हैं। पैले जमाने में दहेज एक पिता अपनी बेटी की जमानत के लीये देता था। अगर पती को कुछ हो गया थो दहेज की मदद से लर्ड्की रहै अकती है। लेकिन अब जब वक्त बदल गया है, दहेज का रिती-रिवज भी बदलना चहिये। आज-कल जादा तर लर्ड्कीओं भी कम करने लग गयी हैं, थो वह अपनी आप पैसे कमा सक्ती हैं। इस्सी लिये इनको अपनी परीवार का पैसा कि जरुरत नहीं हैं, वह अपनी जमानत अपने बना सकती हैं। उपर से अब दहेज जमानत के लिये नहीं रहा और लर्ड्के का परीवार दहेज का उमीद रक्ता है। कई बार जब परीवार बर्डा दहेज मान्ग्ता है लर्डी वाजे नहीं दे पाते। दहेज कि वजे से लोग शादी को इन्कार भी केर देते हैं। बर्डा दहेज देना एक प्रतियोगता बन गया है और जो परीवार नहीं दे पाता अलाब पर जाते हैं। अगर शादी हो भी जाती है दहेज कि बात नहीं रुक थी है। परीवर वाले लर्डी को जला भी देते है अगर उसकी परीवार से और देहज में नहीं मिल ता। अब दहेज देना बहुत बर्डी मुसीवत बन गयी है और यह प्रथा कतम होनी चहिये।

दहेज़ प्रथा

दहेज़ एक कीमत पत्नी के परिवार पति के परिवार को दिया जाता है। इस पत्नी के साथ दिया जाता है। दहेज़ ब्रामिन क्लास शुरू हुई थी। अक्सर पति के परिवार बहुत सारे पैसे, गहने और तोहफे मांगता है। दहेज़ प्रथा हमारे पुराना परम्परा है। लेकिन, बहुत लोग आजकल ख़राब तरह इस्तमाल करते हैं। कुछ पति अपनी पत्नी को मारते, जलाते हैं और जान से भी मार देते हैं। १९६१ में, एक कानून बना गया, दहेज़ रोकने के लिया। लेकिन, अभी भी होता है।
जब मैं शादी करूँगा, मैं दहेज़ नहीं मांगूंगा। मैं सोचता हूँ की अगर मेरी पत्नी के परिवार अपना परिवार को तोहफा देने चाहते हैं, तो मैं मानूंगा। हो सकता है की मई और अपना परिवार भी अपनी पत्नी के परिवार को तोहफा दें। मेरे दादाजी और पिता ने दहेज़ नहीं माँगा था और मैं भी दहेज़ नहीं मांगूंगा।

दहेज़

दहेज़ प्रथा बहुत साल पहले शुरू हुआ था। यह परम्परा सिर्फ़ हिंदू परम्परा नही है। यह परम्परा बहुत सरे संस्कृतियों में होता था। भारत में यह परमपरा ब्राह्मण शादियों में शुरू हुआ था। दहेज़ इस लिए दिया जाता है क्यूंकि एक बहु की ख्याल रखने में ससुराल को बहुत पैसा लगता है, और इस लिए लड़की के माता पिता लड़के के परिवार को बहुत सरे पैसे और तोफे देते है। पुराने ज़माने में लड़की के परिवारी दहेज़ अपने मन से देते थे, लेकिन आज कल बहुत परिवार दहेज़ मांगते है या उस परिवार से रिश्ता नही बनते है। आज कल बहुत सरे पत्नियों को ससुराल में ख़राब तरीके से रखा जाता है क्यूंकि उन्होंने दहेज़ नही दिया है। मेरे ख्याल से यह ग़लत चीज़ है। लेकिन कोई परिवारों में लड़की के माता पिता शौक से दहेज़ देते है, और मुझे लाजता है की ये ठीक है।

दहेज प्रया

भारत में दहेज प्रया आम है। अतीत में परिवार ने सिर्फ़ पैसे दिए। उब लोग उपहार भी देते हैं। कुछ लोग सोचते हैं कि पद्धति उच्ची है लेकिन मैं सोचती हूँ कि कोई परिवार पैसे मागने का हक नहीं है। लोगों कहते हैं कि हिन्दुस्तानी संस्कृति के लिए यह पद्धति बर्ड बाग है। लेकिन पत्नी की कीमत पैसे को ज्यादा है। कुछ लोगों शादी के बाद उपहार् लेते है और पत्नी को छोड देते हैं। दूसरा पति शादी के बाद उनकी पत्नी को चिल्लाते और मरते हैं। दहेज प्रया बहुत ख़राब पद्धति है। लेकिन उब इस दुनिया में ज्यादा पति और पत्नी सब कुछ घर में बाँटते हैं। मुझे लगता है कि लड़के और लड़कियाँ के परिवार दोनों उपहार दिएँ। फ़िर यह पद्धति उचित होगा। आज कल यदि लडकी का परिवार गाडी दी तो पति और पत्नी दोनों फायदा मिले। दहेज प्रया के कारण अगर लडकी गरीब परिवार से आई तो यह अमिर लडके के साथ शादी नहीं कर सकता क्योंकि उसका परिवार बड़ा दहेज नहीं समर्थ होते। अगर दहेज प्रया नहीं था तो ज्यादा लोग शादी प्यार के कारण करेंगे और अगल जाति के लोग शादी कर सकते हैं।