Thursday 26 February 2009

दहेज प्रथा

दहेज लेना देना भारत में कई साल से परम्परा है। पुराने दिनों में दहेज देना बहुत जरुरी था। हर बाप को अपनी बेटी के लिए दहेज दिए बिना शादी नही हो सकती थी। दहेज का मतलब सिर्फ़ पैसे नही लेकिन गाड़ी, बंगला, और ज़मीं भी था। दहेज देना खुशी की बात थी लेकिन कई परिवारों के लिए बहुत तकलीफ की बात थी। गरीब लोगो के लिए बहुत कष्ट था। लड़कियों का पढा होना सब के लिए खुशी की बात नही थी। बहुत गरीब परिवारों में लड़की पैदा होने पर उसे मार दिया जथा था। जितना ज़्यादा दहेज कोई दे सके उठाना बढ़िया लड़का उन मिल सकता था। दहेज की परम्परा आज भी बहुत प्रति है। आज कल के पड़े लिखे लोग इस परम्परा को मिटाना चाथे है। मैं सोचती हूँ कि दहेज की लेनदेन बहुत बुदी चीज़ है। मैंने बहुत कहानिया सुनी हूँ जहाँ लड़किया को जला दिया होता क्योंकि वहां अपने साथ काफी पैसे नही लायी। मैं सोचती हूँ कि हमारे बच्चो को यह सिखाना चाहिये कि लड़की और लड़का के बिच में कोई अन्तर नही। लड़किया आज कल लड़को के जैसे पदाई कर सकते और अच्छे काम भी पा सकते है। मेरे परिवार में दहेज नही दिया जाता है। अमेरिका में यहाँ रिवाज़ नही है यहाँ लड़का और लड़की ने कोई अन्तर नही है। यहाँ परम्परा हमारे देश में बहुत साल से आया है इसी लिए इसी मिटने के लिए बहुत वक्त लगेगा।

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